चिन्दी के मन्दिर पर छत बनाने की सारी कोशिशें नाकामयाब हो जाती हैं, तो करसोग के एक मन्दिर में पांडवों के समय का 40 सेंटीमीटर लम्बा और 250 ग्राम वजन वाला गेहूं का दाना नजर आता है। नैसर्गिक खूबसूरती के बीच बसी इन दोनों घाटियों पर गुलशन निर्वाण की नजर:
हिमाचल में इतनी सैरगाहें हैं कि वह समूचा राज्य अपने आप में सैरगाहों का पर्याय बन गया है। शिमला, कुल्लू-मनाली, धर्मशाला, डलहौजी, खजियार आदि न खत्म होने वाली सैरगाहों की फेहरिस्त है वहां। पर वहां की दो ऐसी घाटियां हैं, जो पर्यटकों के दिलो दिमाग में दर्ज नहीं हैं, बावजूद इसके कि प्रकृति ने उन्हें भी उतनी ही खूबसूरती बख्शी है, जितनी बाकी सैरगाहों को। यह हैं चिन्दी और करसोग की घाटियां।
6 हजार फीट की ऊंचाई पर बसा चिन्दी सेबों की सरजमीं है। अप्रैल के महीने में पेड पूरी तरह फूलों से लदे होते हैं। हरित चादरों से ढके मैदानों के बीच अलसाये से गांव एक अजीब सा सुकून देते हैं।
चिन्दी जाने वाली सडकें काफी संकरी हैं पर भीड कम होने के कारण इनका संकरापन ज्यादा अखरता नहीं। नालदेहरा की बगल से होते हुए आप सतलुज नदी के तट पर जा पहुंचते हैं, जिसे आप 32 किलोमीटर दूर तत्तापानी जाकर पार करते हैं। यहां पर गरम पानी के झरने हैं, जिनमें स्नान किये बिना आगे बढना नामुमकिन है। यहीं से दर्शनीय स्थलों की श्रंखला शुरू होती है। कस्बे से बाहर निकलते ही शिवजी की गुफा के बोर्ड पर नजर जा ठहरती है। उस ओर करीब दो किलोमीटर आगे बढने पर उस गुफा की ओर रास्ता जाता है। इस गुफा को 1986 में खोजा गया था। इसमें एक बहुत बडा शिवलिंग और उसके साथ अन्य देवताओं के प्रतीक के रूप में बने अनेक शिवलिंग स्थापित हैं।
वापस आने पर अब सडक ऊपर की ओर चढती है। करीब 30 किलोमीटर आगे धारमौर से करीब 1 किलोमीटर आगे बढने पर एक सडक मूल महूनाग मन्दिर की ओर जाती है। घने जंगलों के दस किलोमीटर मार्ग पर बाखेडा आता है, जहां सुप्रसिद्ध महुनाग के मन्दिर हैं। ये मन्दिर ‘कर्ण’ को समर्पित हैं।
मेन रोड पर वापस आने पर चिन्दी केवल 10 किलोमीटर दूर रह जाता है। वहां के गांव में चिन्दी माता का मन्दिर है। ट्रेकिंग करने के शौकीन यहां स्थित शिकारी देवी तक 22 किलोमीटर की ट्रेकिंग कर सकते हैं।
यह मन्दिर बीहड जंगलों से अटी पहाडियों से घिरा हुआ है, जिनमें जडी-बूटियों का खजाना छिपा है। यहां से कुल्लू और लाहौल पर्वतीय श्रंखला की बरफ से ढकी पहाडियां नजर आती हैं। यहां के मन्दिर के बारे में एक अजीब बात यह है कि इसकी छत बनाने की कई बार कोशिश की गई, पर हर बार किसी कारणवश यह कोशिश नाकामयाब रही। लोगों का कहना है कि देवी प्रकृति को समर्पित है और इसलिये इसे अपने और प्रकृति के बीच में कोई रुकावट पसन्द नहीं। चिन्दी से 22 किलोमीटर दूर पंगाना है, जो कभी सुकेत राजाओं की राजधानी था। यहां पर एक किला भी है।
जिन सैलानियों में प्रबल धार्मिक भावनाएं होती हैं, उनके लिये चिन्दी से 13 किलोमीटर दूर करसोग घाटी एक वरदान साबित होती है। कटोरे के आकार की इस घाटी के साथ कई अंधविश्वास और किंवदंतियां प्रचलित हैं। आसपास की पहाडियों पर चिन्दी माता, शिकारी देवी और महूनाग का निवास स्थान है। यहां के भूतेश्वर मन्दिर और ममलेश्वर मन्दिर के बारे में मान्यता है कि इन्हें पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान बनवाया था। करसोग शब्द, कर्तव्य और सोग यानी दुख से मिलकर बना है।
भूतेश्वर मन्दिर में पांच मुंह वाले शिवजी की प्रतिमा है, जिनके पीछे महाकाल की प्रतिमा है। इस प्रतिमा के बारे में यह मान्यता है कि इसे जो भी देखता है, उसकी मौत हो जाती है। इसलिये वहां के पुजारी तक आरती करते समय अपना मुंह फेरकर पूजा करते हैं। करसोग के बाजार से दो किलोमीटर दूर ममलेश्वर मन्दिर के अहाते में शिवलिंगों का अनूठा संग्रह है और भीतर पार्वती और शिव की खूबसूरत प्रतिमाएं हैं, जिनकी नाभि में हीरा जुडा है। यहां के लोग एक ढोलक को भीम की ढोलक बताते हैं और वहां के पुजारी गेहूं का एक दाना दिखाकर कहते हैं कि यह पांडवों के काल का है। गेहूं का यह दाना 40 सेंटीमीटर लम्बा है और इसका वजन 250 ग्राम है।
घाटी से 5 किलोमीटर आगे बढने पर एक छोटा सा गांव आता है ‘काओ’। यह कामाक्षा देवी की भूमि है। इसमें पहाडी वास्तुकला और नक्काशी के साथ-साथ पगौडा स्टाइल का अभूतपूर्व संगम नजर आता है। इसकी मूर्ति लाल रंग के ब्रोकेड और आभूषणों से सुसज्जित है। माना जाता है कि नवरात्र के दिनों में यह देवी अपने भक्तों पर जरूर कृपा करती है। यह मन्दिर गुवाहाटी के सुप्रसिद्ध कामाख्या देवी मन्दिर का प्रतीक माना जाता है।
कैसे जायें
चिन्दी शिमला से 90 किलोमीटर दूर है। आप विश्राम करने के लिये वहां या नालदेहरा में ठहर सकते हैं।
कहां ठहरें
यहां ठहरने के लिये हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम (एचपीटीडीसी) का होटल ममलेश्वर है। यह होटल सेब के बगीचे के बीच बना है। यहां आरामदायक सस्ते बजट के कमरे और अच्छा भोजन उपलब्ध है।
यह लेख हिन्दुस्तान में 25 नवम्बर 2006 को छपा था।
सन्दीप पंवार के सौजन्य से
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bhai chindi ka genhu to hum bhee dekhana chayage 40 Cm. long.thanks
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