गुरुवार, सितंबर 08, 2011

सबकी चिन्ता दूर करती हैं माता चिन्तपूर्णी

लेख: विशाल खोसला पतारा

चिन्तपूर्णी हिमाचल प्रदेश राज्य के जिला ऊना में स्थित है। होशियारपुर (पंजाब) से यहां पहुंचने के लिये बडी आसानी से बसें मिल जाती हैं। यात्रीगण दूर-दूर से पूरा वर्ष दर्शनों इत्यादि के लिये यहां आते ही रहते हैं परन्तु श्रावण की अष्टमी पर लाखों की संख्या में भक्तजन इकट्ठे होकर अपनी श्रद्धा-भक्ति का परिचय देते हैं।

चिन्तपूर्णी मन्दिर समुद्र तल से लगभग 3300 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। गर्मियों में भी यहां मौसम सुहावना होता है और सर्दियों में साधारण से कुछ ज्यादा सर्दी होती है। चिन्तपूर्णी को चिन्ता दूर करने वाली माता कहा जाता है। माईदास नामक दुर्गा माता के एक भक्त ने इस स्थान की खोज की थी। भक्त जी का परिवार अमुर नामक गांव में रहता था।

भक्त जी के पिताजी बहुत ही तेजस्वी थे व दुर्गा माता के परम भक्त थे। उनके तीन लडके थे- देवीदास, दुर्गादास व माईदास। उस समय माईदास के पिता मुसलमानों के अत्याचारों से बहुत दुखी थे। वह अमुर नामक गांव को छोडकर रपोर नामक जगह जो अम्ब, जिला ऊना में है, आकर रहने लगे। भक्त माईदास जी भी अपने पिता की तरह दुर्गा माता के बहुत सच्चे भक्त थे। उनका ज्यादा समय दुर्गा पूजा व भजन कीर्तन में ही व्यतीत होता था। माईदास द्वारा कोई काम न करने पर उनके बडे भाई उनसे नाराज रहते थे परन्तु माईदास के पिता माईदास की भक्ति व दुर्गा माता की पूजा से बहुत सन्तुष्ट थे एवं माईदास के जीवन की जरुरतें पूरी करते थे।

माईदास के पिता का देहान्त हो जाने के बाद उनके भाईयों ने उनकी जरुरतें पूरी करने से इंकार कर दिया तथा उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। इसके बाद भक्त माईदास को कई मुश्किलों का सामना करना पडा परन्तु गरीबी में भी भक्त माईदास ने अपनी भक्ति में कोई अन्तर नहीं आने दिया तथा माता दुर्गा पर विश्वास रखा। माईदास को विश्वास था कि मां अपने भक्तों की हर मुश्किल को आसान करती हैं। एक दिन भक्त माईदास अपनी ससुराल जा रहे थे कि चलते-चलते रास्ते में वृक्ष के नीचे थकावट के कारण विश्राम करने बैठ गये। इसी वृक्ष के नीचे आजकल भगवती मां का विशाल मन्दिर है। उस समय यहां एक भयानक जंगल था। इस जगह का नाम छपरोह था परन्तु आज इसको चिन्तपूर्णी कहते हैं। ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही थी। माईदास ने वहां स्वप्न में देखा कि एक छोटी आयु की तप तेज वाली कन्या, जिसके चेहरे पर बडा तेज प्रकाश प्रतीत होता दिखाई देता था और कानों में आवाज सुनाई देती थी कि माईदास तुम यहां आकर मेरी सेवा करो। इसमें तेरा भला है।

इतने में भक्त माईदास ने घबराहट में इधर-उधर चारों ओर देखा पर किसी भी तरफ कुछ दिखाई न दिया। माता दुर्गा का नाम लेते हुए भक्त माईदास अपनी ससुराल पहुंच गये परन्तु वहां भी मन अशान्त रहा। दिल में उदासी छाई रही। इसके बाद वह वापस घर की तरफ चल पडे। वन वृक्ष तक का मार्ग आसानी से कट गया परन्तु जब वह वृक्ष के पास पहुंचे तो आगे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। माईदास वही बैठ गये और सोचने लगे कि वह स्वप्न कहीं भगवती का चमत्कार तो नहीं था। इन विचारों में मग्न होकर माईदास ने भगवती मां का पूजा-पाठ प्रारम्भ कर दिया और साथ ही माता दुर्गा के आगे प्रार्थना की, “हे मइया! मुझ तुच्छ बुद्धि को दर्शन देकर मेरे मन का बोझ हल्का करो।

लगन सच्ची हो, मन छल कपट से साफ हो तो भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती है। माईदास की प्रार्थना सुनकर भगवती मां कन्या के रूप में प्रकट हो गईं। माईदास कन्या को देखते ही उनके चरणों में गिर पडे।

मां भगवती बोली, “अब मैं इस वृक्ष के नीचे पिण्डी रूप में नजर आऊंगी। तुम दोनों समय मेरी पूजा व भजन करना। भक्त लोग मुझे तेरी चिन्ता पूर्ण करने के कारण चिन्तपूर्णी के नाम से याद करेंगे।

भक्त माईदास ने कहा कि, “हे भगवती! कहां मैं अनपढ गंवार और यह इतना भयानक जंगल। यहां तो आदमी दिन में भी आने से डरता है। यहां शान्ति से मैं कैसे रह पाऊंगा? न तो यहां पीने के लिये पानी है और न ही आपका स्थान बना है। न तो यहां कोई मानव है जिसके सहारे मैं अपना जीवन व्यतीत कर सकूं।माता ने माईदास को मन्त्र देकर कहा कि, “अब तुम्हें इस जंगल में कोई डर नहीं होगा। नीचे जाकर जिस पत्थर को तुम उखाडोगे, वहीं से जल निकल आयेगा, जिससे पानी की समस्या हल हो जायेगी। तुम उसी जल से मेरी पूजा करना। जिन भक्तों की मैं चिन्ता दूर करूंगी वे वहां मन्दिर बनवा देंगे। जो चढावा चढेगा उसका अधिकार तुम्हें और तुम्हारे वंश को होगा। इससे तेरा गुजारा हो जायेगा। किसी बात से घबराना नहीं।ऐसा कहने के बाद मां दुर्गा जी पिण्डी के रूप में आलोप हो गईं।

भक्त माईदास ने नीचे जाकर एक पत्थर उखाडा और यहां से छलाछल पानी निकल आया। वह पत्थर मन्दिर में आज भी रखा हुआ है। माईदास ने अपने रहने के लिये पानी की जगह के पास अपनी कुटिया बना ली और प्रतिदिन भगवती की पिण्डी का पूजन शुरू कर दिया।

धीरे-धीरे श्रद्धालुओं की चिन्ता दूर होने पर यहां छोटा सा मन्दिर बन गया। माता के कुछ और चमत्कार होने पर भक्तों ने बडा मन्दिर बनवा दिया। आज उसी स्थान पर चिन्तपूर्णी माता का विशाल मन्दिर है।

सन्दीप पंवार के सौजन्य से

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