मंगलवार, सितंबर 13, 2011

पांगी- अद्वितीय सौन्दर्य

हमारे भारत का सौन्दर्य असीम है। एक ही देश में बर्फीले पहाड, वन्य जीवों से भरे घने जंगल, विशाल समुद्र, सुनहरे रेगिस्तान और तरह-तरह के त्यौहार सिर्फ भारत में ही देखने को मिलते हैं। इसी भारत के कुछ स्थल इतने दुर्गम हैं, जहां साल के कुछ महीनों में ही पहुंचा जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में ऐसा ही एक स्थल है पांगी घाटी। यदि आप लीक से हटकर हिमालय की आत्मा को टटोलना चाहते हैं, तो निश्चित ही आपको पांगी घाटी जाना चाहिये।

पांगी चम्बा जिले की एक तहसील है, लेकिन यहां जाने के लिये आपको या तो मनाली से जाना होगा या जम्मू से किश्तवाड होते हुए। वैसे, सरकार साचपास होते हुए पांगी को सीधे चम्बा से जोडने के लिये सडक बनाने की कोशिश कर रही है लेकिन साचपास पर अत्यधिक बर्फ होने के कारण इस काम में काफी दिक्कत आ रही है। (साचपास से होकर सडक बन चुकी है और गर्मियों में बर्फ पिघलने पर बसें भी चलती हैं। -नीरज जाट)

मनाली से पांगी घाटी जाने के लिये बस या जीप सुविधा उपलब्ध है। यहां से रोहतांग पास, केलोंग और उदयपुर होकर पांगी पहुंचा जा सकता है। इस रास्ते से जून से अक्टूबर तक ही जाया जा सकता है, यानी यह रास्ता साल में सिर्फ चार महीनों के लिये खुलता है। यह पूरी यात्रा प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। एक तरफ बर्फ से ढके पहाड, तो दूसरी तरफ चन्द्रभागा नदी, जो बाद में चिनाब के नाम से जानी जाती है। पांगी के पूर्व में लाहौल घाटी, उत्तर में लद्दाख की जांस्कर और पदम घाटी पश्चिम में जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले की किश्तवाड तहसील (अब किश्तवाड जिला) और दक्षिण में चम्बा जिला है। दुर्गम रास्तों के कारण यहां सैलानी कम ही आते हैं। इस वजह से यहां खाने व रहने के अच्छे होटलों की कमी है, लेकिन यहां पीडब्ल्यूडी ने लगभग सभी जगह जीप के लायक सडक बना दी है। साथ ही इसी विभाग के रेस्ट हाउसों में रहा भी जा सकता है। वैसे जब आप ऐसी किसी दुर्गम जगह की यात्रा करें तो हर परिस्थिति के लिये खुद को तैयार रखें।

पांगी घाटी का हेडक्वार्टर किलाड में है। यह एक छोटा सा शहर है लेकिन यहां कई सरकारी कार्यालय हैं, जिस वजह से यहां आधुनिक सुविधाएं भी मिल जाती हैं। पांगी घाटी में सैलानियों के देखने लायक कई जगहें हैं। यदि आप कश्मीर की ओर जायें तो रास्ते में किलाड से दस किलोमीटर दूर धारवास नामक बेहद खूबसूरत जगह है। यहां पास ही सुराल नाला है, जिसके कुछ ऊपर पानी का एक स्रोत है, जिसे तिलमिल पानी कहते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि इस पानी में कई औषधीय गुण हैं और यह तपेदिक जैसे असाध्य रोगों को भी ठीक कर सकता है। वैसे इस पर कई देशी-विदेशी संस्थाओं द्वारा रिसर्च की जा रही है। आप धारवास से 15 किलोमीटर दूर सुराल घाटी में जा सकते हैं, जो उत्तर में कश्मीर की जांस्कर घाटी से मिलती है। किलाड से आप हुडान घाटी की भी सैर कर सकते हैं, जो यहां से मात्र 13 किलोमीटर दूर स्थित है। वहां से आप भोटोरी होकर शिव चोटी के आधार तक जा सकते हैं। भोटोरी से कुछ आगे ही सुजाट नामक एक छोटी सी झील है, जहां हर साल 16 और 17 जुलाई को एक मेला लगता है, जहां इस घाटी के लोग बडे हर्षोल्लास से सम्मिलित होते हैं।

किलाड से ही आप सैंचू व पाटन घाटियों का भ्रमण कर सकते हैं। यहां का नैसर्गिक सौन्दर्य निश्चय ही आपका मन मोह लेगा। हिमाचल रोडवेज की छोटी बसों अथवा जीपों से यहां पहुंचा जा सकता है। ट्रेकिंग के शौकीनों के लिये भी यहां बहुत कुछ है। किलाड से आप साचपास पार करके चम्बा घाटी में प्रवेश कर सकते हैं। सुराल घाटी से आप शिव शंकर जोत (सरसंक पास) पार करके जांस्कर घाटी में जा सकते हैं। हुडान घाटी से तिंगलोट जोत पार करके सुराल घाटी में आया जा सकता है व यही से परमार जोत पार करके सैंचू घाटी में जाया जा सकता है। यहां ट्रेकिंग का मौसम जुलाई से सितम्बर के बीच होता है। इन रास्तों पर जाने के लिये यहां के लोकल गाइड, रहने के लिये टेंटों और खाने के लिये अपनी व्यवस्था होनी बहुत जरूरी है।

भोटोरी शब्द का इस्तेमाल यहां भोटिया लोगों के गांवों के लिये किया जाता है। वैसे पांगी घाटी में ज्यादातर हिन्दू हैं, जिन्हें पांगवाल कहते हैं, लेकिन यहां सुराल, हुडान, सैंचू व पाटन घाटियों में ऊंचाई पर भोटिया लोगों के घर हैं, जो बौद्ध धर्म के अनुयायी होते हैं। इनका पहनावा व भाषा घाटी के अन्य लोगों से अलग होती है। ये मुख्य रूप से खेती करते हैं व भेड, बकरी, गाय व याक भी पालते हैं। यहां खेती के लिये सिर्फ पांच महीने ही मिल पाते हैं, इसलिये ये साल में सिर्फ एक फसल ही ले पाते हैं। इन्हीं पांच महीनों में ये घर के लिये लकडी, राशन आदि इकट्ठा करते हैं। अधिकतर पांगवाल लोगों को किलाड में उनकी योग्यता के अनुसार नौकरी मिली हुई है, लेकिन भोटिया लोग सर्दियों में जम्मू, पठानकोट, बिलासपुर, दिल्ली जैसी जगहों पर जाकर काम करते हैं और गर्मियां आने पर अपने गांव वापस आ जाते हैं। इतने कठिन वातावरण में रहने के बावजूद इनके चेहरे हमेशा मुस्कराते मिलेंगे।

पांगी के लोग बहुत ही सुन्दर होते हैं। शायद इसी कारण पांगी को सुन्दर चेहरों की घाटी (वैली ऑफ ब्यूटीफुल फेसेज) कहा जाता है। यदि आप थोडा साहस कर सकते हैं, तो वापसी में मनाली से न आकर गुलाबगढ, किश्तवाड होकर जम्मू के रास्ते से आइये। यकीनन आपकी यह यात्रा और भी अविस्मरणीय हो जायेगी। यह रास्ता सालभर खुला रहता है।

पांगी जाने का सबसे अच्छा समय जून के मध्य से अक्टूबर के मध्य तक है।


लेख: सोमनाथ पाल

28 फरवरी 2007 नवभारत टाइम्स

सन्दीप पंवार के सौजन्य से

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