धर्मशाला को सिटी ऑफ रेन यानी पावस की नगरी कहा जाता है। यों तो भारत में सबसे अधिक वर्षा चेरापूंजी में होती है। दूसरा नम्बर धर्मशाला का है। जुलाई के शुरू होते ही आकाश में बादल घुमडने लगते हैं। सफेद पर सलेटी, सलेटी पर सुरमई पर्तें बिछने लगती हैं। और बिजली की चमक तो थमती ही नहीं। बरसात के दिनों में बिजली लगातार चमकती रहती है। आसमान का उजाला धरती को अवलोकित किये रहता है। धर्मशाला में 269.41 सेमी बरसात होती है। यही वे दिन होते हैं जब मौसम सुहावना होता है वर्ना गर्मियों में धर्मशाला का अधिकतम तापमान 32.6 डिग्री सेल्शियस और न्यूनतम 22.2 डिग्री सेल्शियस होता है। मैदान में इतना तापमान गर्म नहीं माना जाता पर इस तापमान में धर्मशाला में घर से बाहर निकलते नहीं बनता। सवेरे नौ बजे धूप चिलचिलाने लगती है।
हिमाचल पर्यटन निगम धर्मशाला को हिल स्टेशन के रूप में प्रचारित करता है पर हिल स्टेशन के रूप में इस शहर का विकास नहीं हुआ है। यहां होटल बहुत महंगे हैं। सरकारी होटलों में एकमात्र सस्ती जगह होटल भागसूनाग है या छोटे-मोटे प्राइवेट गेस्ट हाउस हैं। होटल भागसूनाग और गेस्ट हाउस मैक्लोडगंज में हैं जो धर्मशाला से नौ किलोमीटर दूर ऊंचाई पर है। होटल भागसूनाग हरे-भरे देवदारों के बीच में टेकडी पर बना हुआ है। ज्यादातर विदेशी यहां अड्डा जमाये रहते हैं।
समुद्रतल से धर्मशाला की ऊंचाई 1250 मीटर है। जुलाई और अगस्त (जो भयंकर बरसात के दिन होते हैं) को छोडकर अप्रैल से नवम्बर तक यहां रहा जा सकता है। दिसम्बर में सर्दी पडने लगती है। सर्दियों में अधिकतम तापमान 14.7 डिग्री और न्यूनतम 6.5 डिग्री होता है। मैक्लोडगंज को अपर धर्मशाला कहा जाता है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 1768 मीटर होने के कारण यहां सर्दियों में बर्फ पड जाती है। लोवर धर्मशाला और मैक्लोडगंज के बीच में धर्मशाला छावनी है।
कोतवाली बाजार यहां का मुख्य बाजार है। पर धर्मशाला शहर खासा तंग है और सफाई की भी कमी है। दुकानों के सामने दुकानदार और तो और कई बार ग्राहक अपने स्कूटर पार्क कर देते हैं जिससे रास्ता और भी तंग हो जाता है।
पावस की नगरी कहलाने के बावजूद लोवर धर्मशाला में उतनी हरियाली नहीं है। ऊपर छावनी और मैक्लोडगंज का इलाका बहुत हरा भरा है। देवदार, ओक तथा रोडोडेंड्रन के घने जंगल हैं।
मैक्लोडगंज को ‘लामानगर’ कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। यहां दुकानों की चार कतारों वाला छोटा सा बाजार है। जिनके पास दुकानें नहीं, वे पटरियों पर सामान फैलाए बैठे रहते हैं। किरियाने के सामान से लेकर आयातित स्लीपिंग बैग, कन्धे पर लटकाने वाले झोले और तिब्बती हैण्डीक्राफ्ट तक सबकुछ मिल जाता है। एक खास तरह के तिब्बती जूते भी मिलते हैं जिन्हें पहनकर लामा मुखौटा नृत्य करते हैं।
मैक्लोडगंज बाजार के अन्त में एक टेकडी है। यहां सडक दो हिस्सों में बंट गई है। दाहिनी ओर जाने वाली सडक का नाम है खडा डण्डा मार्ग। यहां एक बोर्ड लगा हुआ है जिसपर लिखा हुआ है- वेलकम टू लिटल ल्हासा बट बाइकाट चाइनीज गुड्स। लिटल ल्हासा में छोटे-बडे स्कूल, लाइब्रेरी और तिब्बत मेडिकल इंस्टीट्यूट के अलावा खंचिंग किशुंग यानी केन्द्रीय तिब्बती सचिवालय भी है। यहां से ‘तिब्बत बुलेटिन’ और ‘तिब्बतन रिव्यू’ नाम से पत्र और ‘डायलोमा’ और ‘तिब्बतन जर्नल’ नाम से दो पत्रिकाएं निकलती हैं।
खडा डण्डा मार्ग पर एक गोम्पा है जिसके सामने दलाई लामा रहते हैं। उनका आवास सुन्दर और बडा है। गोम्पा और उनके आवास के बीच में एक बाग है। दलाई लामा से मिलने के लिये भारत सरकार से इजाजत लेनी पडती है।
गोम्पा (बौद्ध मन्दिर) का पण्डाल काफी बडा और सजा हुआ है। दीवारों पर कपडे पर ‘पेण्ट’ की हुई महात्मा बुद्ध के जीवन की झलकियां लटकी हुई हैं जिन्हें तिब्बती भाषा में थांगा कहते हैं। अलमारियों में कंजु यानी लामा धर्म की शिक्षाओं की पोथियां सुन्दर जिल्दों में बंधी हुई हैं।
लिटल ल्हासा में स्त्री लामाओं के रहने की जगह गोम्पा से काफी हटकर नीचे बस्ती में है। बडे आश्चर्य की बात है कि अधिकांश जम्मो (स्त्री लामा) निरक्षर होती हैं जबकि लामा साक्षर होते हैं। परम्परा के अन्तर्गत बौद्ध लामाओं के लिये सबसे ऊंची डिग्री गीशे है जो डाक्ट्रेट के बराबर होती है। गीशे चार होते हैं- हरम्पा गीशे, थोकरम्पा गीशे, धोरम्पा गीशे और लिंग्शे गीशे।
धर्मशाला में सैलानियों के लिये दर्शनीय डल झील और करेरी झील, भागसूनाग और सेण्ट जॉन चर्च हैं। डल और करेरी झील धर्मशाला से बहुत दूर हैं। रास्ता जंगल से होकर है। सेण्ट जॉन चर्च दूरी के हिसाब से धर्मशाला छावनी और मैक्लोडगंज के बीच में सडक से कुछ हटकर बना हुआ है। पास का बस स्टॉप पल्सेटगंज है। चर्च की ऊंची खिडकियों के कांच पर बडी सुन्दर रंगीन चित्रकारी की हुई है।
सेण्ट जॉन चर्च के बाहर खुले में मोटे, मजबूत लकडी के चौखटे के सहारे अष्टधातु का बना एक विशाल घण्टा लटका हुआ है। बजाने पर उसकी मीठी अनुगूंज बहुत देर तक सुनाई देती है। यह घण्टा सन 1915 में लंदन में ढाला गया था। इस पर अंग्रेजी में एक सन्देश लिखा हुआ है- ईसा मसीह के सैनिक, उठो और शस्त्र धारण करो। सेण्ट जॉन चर्च के कब्रिस्तान में लॉर्ड एल्गिन की कब्र है जिसकी देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण करता है। लॉर्ड एल्गिन अंग्रेजों के शासनकाल में भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल थे। उनका देहान्त धर्मशाला में 20 नवम्बर 1863 को हुआ।
भागसूनाग के लिये मैक्लोडगंज से रास्ता अलग होता है। यहां भागसूनाग जलकुण्ड और एक शिव मन्दिर है। भागसूनाग तक पक्की सडक है। टैक्सियां यात्रियों को धर्मशाला से भागसूनाग लाती हैं। मैक्लोडगंज से पैदल भी जा सकते हैं। रास्ता आसान है और पहाडों के ख्याल से अधिक दूर भी नहीं है। भागसूनाग का जलकुण्ड काफी बडा है। पानी निकलकर नीचे एक दूसरे कुण्ड में जाता है जिसमें लोग तैरते हैं। बहुत ठण्डा होने के कारण तैराक दो चार हाथ मारकर बाहर आ जाते हैं और चट्टानों पर पसर कर धूप सेंकते हैं। थोडी देर बाद फिर नहाने चल पडते हैं।
धर्मशाला से शिला के रास्ते कांगडा जाओ तो खनियारा गांव रास्ते में पडता है। इस गांव में खरोष्ठी लिपि में शिलालेख देखे जा सकते हैं। ये लेख महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं हैं।
धर्मशाला से नौ किलोमीटर ट्रेकिंग करके त्रिउण्ड जा सकते हैं। पहाड की चोटी पर एक डाक बंगला है। यहां पहुंचकर रात में धर्मशाला की जगमगाती रोशनी को देखना बहुत अच्छा लगता है। घना जंगल होने के कारण रात में यहां जंगली जानवर घूमते रहते हैं। त्रिउण्ड की ऊंचाई समुद्र तल से 9382 फीट होने के कारण यह बडी ठण्डी और सुहावनी जगह है।
लेख: जगन सिंह
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