बुधवार, मई 23, 2012

कान्हा नेशनल पार्क- कुदरत का करिश्मा

मध्य प्रदेश के मण्डला और बालाघाट जिलों में मैकल पर्वत श्रंखलाओं की गोद में स्थित कान्हा देश के सर्वोत्कृष्ट राष्ट्रीय उद्यानों में एक है। कान्हा महज एक पर्यटन केन्द्र ही नहीं है, बल्कि भारतीय वन्य जीवन के प्रबंधन और संरक्षण की सफलता का प्रतीक भी है। हृष्ट-पुष्ट जंगली जानवरों के लिये पूरी दुनिया में मशहूर कान्हा में प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक सैलानी घूमने आते हैं।
कान्हा मध्य प्रदेश का पहला राष्ट्रीय उद्यान है। वन्य जन्तुओं की सघनता की दृष्टि से यह उद्यान काफी समृद्ध है। 940 वर्ग किलोमीटर दायरे में सदाबहार साल वनों से आच्छादित कान्हा एक अदभुत वन्य प्रान्तर है। प्रबंधन की दृष्टि से यह कान्हा, किसली, मुक्की, सुपरवार और मैसानघाट नामक पांच वन परिक्षेत्रों (रेंज) में बंटा हुआ है। पार्क में पर्यटकों के प्रवेश के लिये खटिया (किसली रेंज) और मुक्की में दो प्रवेश द्वार (बैरियर) हैं। यहां से पार्क के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र कान्हा की दूरी क्रमशः 10 और 30 किलोमीटर है।
अपने नैसर्गिक सौन्दर्य के लिये दुनियाभर में मशहूर इस राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना सन 1955 में हुई और सन 1974 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर के अधीन ले लिया गया।
कब जायें: कान्हा राष्ट्रीय उद्यान 1 जुलाई से 31 अक्टूबर के मध्य वर्षा के दौरान पर्यटकों के लिये बन्द रहता है। यहां भ्रमण के लिये नवम्बर से जून तक कभी भी जाया जा सकता है। सर्दियों में ऊनी और गर्मियों में हल्के सूती वस्त्रों की जरुरत पडती है।
कैसे जायें: जबलपुर निकततम हवाई अड्डा है। रेल से आने वाले मुसाफिरों को भी कान्हा आने के लिये जबलपुर रेलवे स्टेशन पर उतरना चाहिये। जबलपुर से कान्हा के लिये नियमित बस सेवा समेत सभी प्रकार की सडक परिवहन सुविधाएं उपलब्ध हैं।
प्रमुख नगरों से दूरी: दिल्ली 980 किलोमीटर, मुम्बई 1305 किलोमीटर, नागपुर 290 किलोमीटर, भोपाल 540 किलोमीटर, जबलपुर 165 किलोमीटर।
कहां ठहरें: कान्हा आने वाले पर्यटकों के लिये आवास की स्तरीय सुविधाएं सुलभ हैं। भारतीय पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित सफारी लॉज में पर्यटकों के लिये वातानुकूलित आवास की सुविधा है। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम का किसली स्थित यूथ हॉस्टल और टूरिस्ट बंगला मुक्की और टूरिस्ट हट खटिया में भी खाने-पीने और ठहरने की अच्छी व्यवस्था है।
क्या देखे: बाघ देखू पर्यटकों के लिये कान्हा स्वर्ग है। दरअसल कान्हा में बाघ दर्शन ने पर्यटन को काफी बढावा दिया है। कान्हा, किसली और मुक्की में वन विभाग के पालतू हाथी सुबह सवेरे पांच साढे पांच बजे ही घने जंगलों में बाघ की तलाश में निकल पडते हैं। वर्षों के अनुभव से महावत बाघ की खोज में माहिर हो गये हैं।
बाघ के पदचिन्ह, वन्य जन्तुओं की अलार्म काल, लंगूरों की हलचल और गिद्धों की मंडराहट के जरिये वे बाघ खोज लेते हैं। बाघ की खोज के बाद वायरलेस के जरिये सूचना भेज दी जाती है कि अमुक स्थान पर बाघ मिल गया है।
इस सन्देश के पश्चात बाघ देखू पर्यटक निर्धारित स्थल तक वाहन से पहुंचते हैं और वहां से हाथी पर सवार होकर बाघ देखने जाते हैं। आमतौर पर बाघ आदमी को देखते ही भाग जाते हैं, मगर कान्हा के बाघ कैमरे और दूरबीनों से लैस हाथी के हौदे पर सवार पर्यटकों को देखने के आदी हो चुके हैं।
बाघ के अतिरिक्त कान्हा में बारहसिंघा की एक दुर्लभ प्रजाति पंकमृग (सेर्वुस बांडेरी) भी पाई जाती है। सन 1970 में यहां इनकी संख्या 3000 से घटकर सिर्फ 66 रह गई थी। बाद में एक विशेष योजना के जरिये इनकी जनसंख्या वृद्धि के प्रयास किये गये जो काफी हद तक सफल रहे। बाघ और बारहसिंघा के अतिरिक्त यहां भालू, जंगली कुत्ते, काला हिरण, चीतल, काकड, नीलगाय, गौर, चौसिंगा, जंगली बिल्ली और सूअर भी पाये जाते हैं। इन वन्य प्राणियों को हाथी की सैर अथवा सफारी जीप के जरिये देखा जा सकता है।
वन्य प्राणियों के दर्शन के अतिरिक्त पर्यटकों को पार्क में स्थित ब्राह्मणी दादर भी जरूर जाना चाहिये। किसली से करीब 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस जगह से सूर्यास्त का मनोरम दृश्य दर्शकों को मुग्ध कर देता है।
कान्हा का इलाका आदिवासियों का गढ है। पर्यटक पार्क के निकटवर्ती भीलवानी, मुक्की, छपरी, सोनिया, असेली आदि वनग्रामों में जाकर यहां की प्रमुख बैगा जनजाति के लोगों से मिल सकते हैं। उनकी अनूठी जीवनशैली और परिवेश का पर्यवेक्षण निःसन्देह आपकी यात्रा की एक और स्मरणीय सौगात होगी।

लेख: अनिल डबराल: हिन्दुस्तान में 26 नवम्बर 1995 को प्रकाशित
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

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