शुक्रवार, मई 18, 2012

दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान- कुदरत की खुशबू से सराबोर

हांगुल प्रजाति के हिरणों के लिये प्रसिद्ध दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान वन्य जन्तु प्रेमियों को हमेशा से आकर्षित करता रहा है। 141 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह राष्ट्रीय उद्यान दुर्लभ वन्य प्राणियों का डेरा है। दाचीगाम के शान्त और सुरम्य वातावरण में पहुंच कर पर्यटक प्रकृति और वन्य जन्तुओं के स्वच्छंद विहार को देखकर खो सा जाता है।
किसी जमाने में दाचीगाम शाही शिकारगाह के रूप में मशहूर था। इस वन्य क्षेत्र में कश्मीर नरेश और उनके विशिष्ट मेहमानों को ही शिकार करने की अनुमति थी। स्वतंत्रता के बाद इसे अभयारण्य का दर्जा दिया गया और सन 1987 में इसे राष्ट्रीय उद्यान में तब्दील कर दिया गया। जम्मू कश्मीर के चार राष्ट्रीय उद्यानों में से सबसे समृद्ध दाचीगाम अपनी जैव विविधता के कारण पूरी दुनिया में मशहूर है।
कब जायें: गर्मी का मौसम दाचीगाम की सैर के लिये अनुकूल रहता है, वैसे सर्दियों में भी पार्क के निचले हिस्सों में भ्रमण का आनन्द लिया जा सकता है। बहरहाल आतंकवादी गतिविधियों के कारण कश्मीर के इस मशहूर राष्ट्रीय उद्यान में प्रकृति एवं वन्य जन्तु प्रेमियों के लिये घूमना फिलहाल असुरक्षित है। सुधरे हुए हालात में आप यहां भ्रमण का कार्यक्रम बना सकते हैं।
कैसे जायें: दाचीगाम का निकटतम हवाई अड्डा श्रीनगर सिर्फ 20 किलोमीटर दूर है। श्रीनगर के लिये जम्मू, चण्डीगढ और दिल्ली से सीधी विमान सेवा उपलब्ध है।
निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मूतवी है जहां देश के विभिन्न हिस्सों से रेलगाडियां पहुंचती हैं। यहां से दाचीगाम तक का सफर सडक मार्ग से बस या टैक्सी द्वारा तय किया जा सकता है।
प्रमुख नगरों से दूरी: श्रीनगर 20 किलोमीटर, जम्मू 320 किलोमीटर, चण्डीगढ 668 किलोमीटर, दिल्ली 906 किलोमीटर, मुम्बई 2284 किलोमीटर।
कहां ठहरें: दाचीगाम गेस्ट हाउस पार्क में आवास के लिये एक उपयुक्त जगह है। वैसे पर्यटक श्रीनगर में रहते हुए भी सुगमतापूर्वक दाचीगाम आ जा सकते हैं।
क्या देखें: दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान का मुख्य आकर्षण है- हांगुल। यूरोपियन रेड डियर प्रजाति का यह मासूम हिरण पूरी दुनिया में सिर्फ यहीं पाया जाता है। अत्यन्त दुर्लभ प्रजाति का यह मृग अपने अस्तित्व के लिये जूझ रहा है। अंतर्राष्ट्रीय वन्य जीव संरक्षण संघ की रेड डाटा बुक में हांगुल का भी नाम दर्ज है।
विश्व वन्य जन्तु कोष के सहयोग से जम्मू कश्मीर सरकार ने हांगुलों के समुचित संरक्षण के लिये सन 1970 में प्रोजेक्ट हांगुल नाम की एक विशेष परियोजना शुरू की। यह परियोजना काफी हद तक सफल रही और सन 1988 में यहां हांगुलों की संख्या 170 से बढकर 818 तक पहुंच गई। किन्तु इसके बाद राज्य में लगातार बढती हुई आतंकवादी गतिविधियों के कारण हांगुलों का जमकर शिकार किया गया और सिर्फ चार वर्ष में ही सात सौ से अधिक हांगुल मार डाले गये। राज्य सरकार ने वर्ष 1992 में जब हांगुलों की गणना कराई तो इनकी संख्या सिर्फ सौ के करीब पाई गई। हांगुलों की घटती संख्या पर समस्त विश्व में चिन्ता व्यक्त की गई। सैन्य बल की मदद से वन्य जन्तु संरक्षकों ने हांगुलों की हर सम्भव सुरक्षा की, खासतौर पर तस्करों, घसियारों और लकडी काटने वालों पर विशेष नजर रखी गई। इस सुरक्षा व्यवस्था से दाचीगाम में हांगुलों के अवैध शिकार में कमी आई है। अब इनकी संख्या में बढोत्तरी हुई है। जनवरी 1995 की गणना में यहां 290 हांगुल पाये गये जिनमें 24 नर, 181 मादा और शेष बच्चे थे।
कश्मीरी बारहसिंगा के नाम से प्रसिद्ध हांगुल गर्मियों में ऊपरी दाचीगाम की 9000 से 16000 फीट ऊंची पहाडियों में चले जाते हैं, जहां वे पतझड तक निवास करते हैं। सर्दियों में हांगुल निचली पहाडियों में चले आते हैं और बसन्त तक यहीं रहते हैं। ऊपरी दाचीगाम, दारा, न्यूथेड, खामोह, ओवरो, तराल और सांगर गुलु क्षेत्र में इन्हें अपेक्षाकृत सुगमतापूर्वक देखा जा सकता है।
दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के वन्य आकर्षणों में कस्तूरी मृग, तेंदुआ, काला और भूरा भालू, जंगली बिल्ली, मार्टिन मारमोट, लाल लोमडी और जंगली बकरी को देखना एक रोमांचकारी अनुभव है।

लेख: अनिल डबराल (हिन्दुस्तान में 26 नवम्बर 1995 को प्रकाशित)
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

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