शनिवार, जून 18, 2011

भोजपुर- राजा भोज के भोलेनाथ के दिग्दर्शन

लेख: प्रेम नाथ नाग

बेतवा नदी के किनारे बना उच्चकोटि की वास्तुकला का नमूना राजा भोज के मुख्य वास्तुविद और अन्य विद्वान वास्तुविदों के सहयोग से तैयार हुआ। इसे भोजेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है। मन्दिर की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका चबूतरा 35 मीटर लम्बा है।

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 32 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर भव्य व विशाल शिव मन्दिर और जैन मन्दिर के लिये प्रसिद्ध है। रायसेन जिले की गोहरगंज तहसील के औबेदुल्लागंज विकास खण्ड में स्थित इस शिव मन्दिर को 11वीं सदी में परमार वंश के राजा भोज प्रथम (ईस्वी 1010-1055) ने बनवाया था। बेतवा नदी के किनारे बना उच्चकोटि की वास्तुकला का यह नमूना राजा भोज के मुख्य वास्तुविद (स्थापति) और अन्य विद्वान वास्तुविदों के सहयोग से तैयार हुआ। इसे भोजेश्वर मन्दिर भी कहा जाता है।

इस मन्दिर की विशालता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका चबूतरा 35 मीटर (115 फुट) लम्बा, 25 मीटर (82 फुट) चौडा और 4 मीटर (13 फुट) ऊंचा है। भारी भरकम पत्थरों से बना यह चबूतरा अपने आप में अनोखा है। कई-कई टन भारी अनेक पत्थरों को इस चबूतरे पर चढाकर शिव मन्दिर के गर्भगृह का निर्माण किया गया है। बाहर से गर्भगृह 20 वर्ग मीटर (65 वर्ग फुट) और भीतर से 12.80 वर्ग मीटर (42 वर्ग फुट) है। मन्दिर में विशालकाय शिवलिंग 7.90 मीटर (26 फुट) ऊंचाई के गढे हुए गौरी पट्ट पर स्थित है। शिवलिंग 2.3 मीटर (7.5 फुट) ऊंचा है और उसकी परिधि 5.5 मीटर (18 फुट) की है। इसे कुछ लोगों द्वारा भारत का सबसे ऊंचा शिवलिंग माना जाता है। गर्भगृह में प्रवेश के लिये 10 मीटर ऊंचा और 4 मीटर चौडा द्वार है।

यह विशाल मन्दिर राजा भोज के महान व्यक्तित्व और दूरदृष्टा होने का परिचायक है। भोज के पिता सिंधु राजा गोदावरी नदी के दक्षिण में चालुक्य राजा तेलपा के हाथों मारे गये थे। मान्यता है कि उन्हीं की स्मृति में भोज ने शिवमन्दिर का निर्माण करवाया था जिसका डिजाइन ‘स्वर्गारोहणप्रसाद’ कहलाता है।

भोज ने अनेक मन्दिर बनवाये। शिव मन्दिर से एक किलोमीटर की दूरी पर खूबसूरत जैन मन्दिर है। शिव मन्दिर की ही तरह यह भी अधूरा है। वहां के शिलालेख पर राजा भोज का उल्लेख है। मन्दिर में जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं हैं। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध साहित्य के अनुसार इसमें मुख्य प्रतिमा तीर्थंकर शान्तिनाथ की है, जबकि राज्य पर्यटन और रायसेन जिले की वेबसाइट में इसे भगवान महावीर की 20 फुट ऊंची प्रतिमा बताया गया है। कुछ अन्य जगह इसे आदिनाथ की प्रतिमा लिखा गया है। पुरातत्व विभाग के अनुसार मुख्य प्रतिमा के दोनों ओर पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथ की दो छोटी प्रतिमाएं हैं।

यह क्षेत्र भक्तामर स्त्रोत के रचयिता मुनि मानतुंगाचार्य से सम्बन्धित है। उनकी समाधि यहां बनी है। चारों ओर का मनोहारी दृश्य आत्मिक शान्ति प्रदान करता है। भोज ने वास्तुकला में दक्षता देने के लिये वास्तुविदों के प्रशिक्षण की पाठशाला चलाई थी। परन्तु राजा की आकस्मिक मृत्यु के कारण शिव मन्दिर का अन्तिम चरण में पहुंचा कार्य और पाठशाला दोनों ही बन्द हो गये। मन्दिर अधूरा भी इतना भव्य है कि जानकार कहते हैं कि अगर यह पूरा हो गया होता तो यह बेमिसाल होता। इसे कुछ इतिहासकारों द्वारा पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है। कालान्तर में स्थानीय लोगों ने अपनी-अपनी आवश्यकतानुसार चबूतरे के पत्थरों को बटोरना शुरू कर दिया और कुछ क्षति भी पहुंचाई। इसके अतिरिक्त 15वीं शताब्दी में माण्डू के सुल्तान होशंगशाह ने हमला करके चबूतरे और मन्दिर को भारी क्षति पहुंचाई।

राजा भोज ने दक्ष इंजीनियरों की सहायता से पास ही में जो बांध और झील बनवाये थे, उन्हें भी काफी नुकसान पहुंचाया गया और जल व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया गया था। दरअसल पत्थरों से बने दो विशालकाय बांधों को भी राजा भोज की उपलब्धियों में गिना जाता है। कहा जाता है कि झील चारों तरफ पहाडियों से घिरी थी और उसमें महज दो जगह रास्ते थे- एक सौ गज का और दूसरा पांच सौ गज का। भोज ने पत्थरों से बांध बनाकर झील को बांधा था। छोटा बांध 44 फुट ऊंचा और नीचे से तीन सौ फुट मोटा था। बडा बांध 24 फुट ऊंचा और सौ फुट चौडा था। दोनों बांध मिलकर 250 वर्ग मील में फैली झील का पानी रोकते थे। गोंड जनजाति में यह कहानी प्रचलित है कि होशंगशाह ने छोटे बांध को तोडा तो उसकी पूरी सेना को उसे तोडने में तीन महीने लगे। बांध टूटने के बाद तीन साल झील का पानी सूखने में लगे और उसके भी अगले तीस साल बाद तक वह जमीन रिहाइश लायक नहीं रही। कहा जाता है कि इस विशालकाय झील के सूखने से मालवा इलाके का मौसम हमेशा के लिये बदल गया।

एक समय था जब भोजपुर से भोपाल तक फैली झील के अन्तिम छोर पर भोजेश्वर मन्दिर खडा दिखाई देता था। मन्दिर निर्माण के लिये जिस पत्थर का प्रयोग किया गया उसे भोजपुर के ही पथरीले क्षेत्रों से प्राप्त किया गया था। मन्दिर के समीप और दूर तक पत्थरों और चट्टानों की कटाई के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। ‘अर्ली स्टोन टेम्पल्स ऑफ ओडिसा’ की लेखिका विद्या देहेजिया के अनुसार भोजपुर के शिव मन्दिर और भुवनेश्वर के लिंगराज मन्दिर व कुछ और मन्दिरों के निर्माण में समानता दिखाई देती है। मन्दिर से कुछ दूर बेतवा नदी के किनारे पर माता पार्वती की गुफा है। क्योंकि गुफा नदी के दूसरी ओर है इसलिये नदी पार जाने के लिये नौकाएं उपलब्ध हैं। यद्यपि भोजपुर का प्रसिद्ध शिव मन्दिर वीरान पथरीले इलाके में खडा है परन्तु श्रद्धालुओं की कोई कमी नहीं है। प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर यहां बहुत बडा मेला लगता है।

कैसे पहुंचे

1. देश के किसी भी कोने से हवाई या रेल मार्ग से भोपाल पहुंचें।

2. भोपाल से भोजपुर की दूरी 32 किलोमीटर है।

3. घूमने के लिये निजी वाहन अधिक उचित हैं।

4. बस स्टैण्ड से भोपाल मण्डीदीप रोड पर चलते हुए भोजपुर उतरें। किराया 8-10 रुपये प्रतिव्यक्ति लगता है। वहां से मन्दिर के लिये टेम्पो लें। उसका किराया भी प्रतिव्यक्ति 8-10 रुपये लगता है।

5. मन्दिर में या उसके आसपास ठहरने का कोई स्थान नहीं है यानि ठहरने के लिये भोपाल ही उपयुक्त होगा।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 26 अक्टूबर 2008 को प्रकाशित हुआ था।


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