मंगलवार, जून 07, 2011

श्रीलंका- समंदर का मोती

लेख: प्रशान्त कुलश्रेष्ठ

जो भारतीय क्रिकेटप्रेमी श्रीलंका गये नहीं हैं, वे कोलम्बो, कैंडी और दांबुला जैसी जगहों को क्रिकेट मैचों के जरिये बखूबी पहचानते हैं। लेकिन हमारे सबसे निकट पडोसियों में से एक श्रीलंका क्रिकेट से ज्यादा अपनी प्राकृतिक खूबसूरती और बौद्ध परंपराओं के लिये दुनियाभर में प्रसिद्ध है। सालों से चल रहे तमिल-सिंहली संघर्ष और तीन साल पहले आई सुनामी ने इस मोती सरीखे द्वीप देश को चोट बेशक पहुंचाई है लेकिन इसकी खूबसूरती अक्षुण्ण है।

काफी कुछ अपना-अपना सा है श्रीलंका। कहीं-कहीं भाषा और खानपान का अन्तर अगर दरकिनार कर दें तो काफी कुछ हमारे देश से मिलता-जुलता है। श्रीलंका पर्यटन के न्यौते पर वहां पहुंचे भारतीय मीडिया के सदस्यों को ऐसा ही महसूस हुआ। दिल्ली के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे से श्रीलंका एयरलाइंस की फ्लाइट ने भंडारनायके एयरपोर्ट, कटनायके पहुंचने में कुल सवा तीन घण्टे लिये। हम लोगों को ठहराने की व्यवस्था बेनटोटा और बेरुवेला के होटलों में अलग-अलग की गई थी। एयरपोर्ट से होटल पहुंचने में करीब ढाई घण्टे लगे। पहले दिन विश्राम करने के साथ शाम को स्थानीय बाजारों का जायजा लिया।

दूसरे दिन सुबह से ही सडक-सडक और गली-गली जो बौद्ध धर्म की बयार का अनुभव हुआ, उसने भारतीय धार्मिक परम्पराओं की याद ताजा करा दी। दिन में कई स्थानों पर बौद्ध पूजा देखने को मिली। इन पूजाओं में ध्यान की क्रिया प्रमुख रूप से करते हुए लोग दिखाई दिये। बौद्ध आराधना में लीन प्रत्येक भक्त उस दिन श्वेत वस्त्र ही धारण किये हुए था। मीडिया सदस्यों को भी उस दिन श्वेत वस्त्र पहनने को कहा गया था। दोपहर में समुद्री तट पर एक द्वीप पर मीडिया के लिये भी मेडिटेशन प्रोग्राम था। नौकाओं द्वारा इस द्वीप पर भेजा गया। लगभग 200 मीटर की ऊंचाई पर धर्मदीप मेडिटेशन सेंटर, मोरेगली के धर्मगुरू डब्ल्यू. सारानंदा थेरो ने मेडिटेशन शुरू किया। इसी स्थान पर हमको ब्लैक हर्बल टी का लुत्फ उठाने का मौका भी मिला। शाम को समुद्री तट पर यू.आई.डी. ग्राउण्ड में बौद्ध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। हम लोग भी इनमें शरीक होते-होते स्वयं को बौद्धमय महसूस कर रहे थे।

अगले दिन हम सबकी वैन रवाना हुई गॉल फोर्ट की तरफ। डच शासकों द्वारा अपने काल में बनाये किले की इमारतों में आज भी अदालतें और सरकारी कार्यालय खुले हुए हैं। इसी स्थान पर एक प्राचीन चर्च भी देखा। शाम को कोलम्बो में होटल ताज समुद्र में होटल्स एसोशियेशन की ओर से डिनर था। दिन भर की थकान के बाद भारी मन से हम लोग कोलम्बो रवाना हुए लेकिन रास्ते में लगभग दो घण्टे के दौरान ऐसा भव्य, भक्तिमय, वैविध्य वातावरण देखने को मिला कि सारी थकान मिट गई। रात करीब दो बजे तक जब हम अपने होटल लौटे तो कई स्थानों पर सजावट और रंगारंग प्रोग्रामों का सिलसिला जारी दिखाई दिया।

चौथे दिन भी हमको नाश्ता करने के बाद ही निकलना था। कालीबोध मन्दिर देखने के बाद हम फैचरी गये। इस फैचरी में कछुओं के अण्डों का संरक्षण देखा। हमारे सामने ही फैचरी के स्वामी आरनोल्ड ने तीन दिन की उम्र वाले नन्हें-नन्हें कछुओं को समुद्र में छोडा। इस दृश्य को देखने के लिये पर्यटकों की काफी भीड जमा थी। शाम को हम सबका भोजन बेनटोटा में होटल ताज एक्साटिका में था।

समुद्री बीच पर शानदार लहरों की सरसराहट के बीच हम सबने भोजन का आनन्द लिया। अगले दिन हमें बेनटोटा छोडकर कैंडी के लिये रवाना होना था। रास्ता करीब छह घण्टे का था। रास्ते में एक टी फैक्टरी भी हमने देखी। करीब साढे तीन बजे हम कैंडी पहुंचे। समुद्र तल से करीब 650 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पहाडी पर हमारा होटल अमाया हिल्स था। अगले दिन कैंडी में 22 किलोमीटर दूर मताले नामक कस्बे में भव्य हिंदू मन्दिर श्री मुत्तूमारिअम्मान देखने को मिला। मन्दिर में मुख्य प्रतिमा गणेश की थी। बाकी प्रमुख देवी-देवता विराजमान थे। इसके बाद हम दांबुला पहुंचे जहां ‘केव टेम्पल’ है। तकरीबन साढे चार सौ सीढियां ऊपर एक विशाल गुफा में बुद्ध के जीवन की तमाम झांकियां हैं। इसके बाद कैंडी लेक, व्यू पॉइंट आदि स्थानों पर होते हुए हम ‘टुथ टेम्पल’ पहुंचे। इसी मन्दिर के निकट ऑडिटोरियम में एक घण्टे का सांस्कृतिक कार्यक्रम भी देखा।

अगले दिन हमें कोलम्बो रवाना होना था। रास्ते में हम पीनावाला स्थित ‘हाथी पार्क’ में रुके जहां केवल दो दिन का हाथी का बच्चा भी देखने को मिला। सर्वाधिक आकर्षक वो दृश्य था जब छोटे हाथियों को उनके रखवाले बोतल से दूध पिला रहे थे। हाथियों को दोपहर में दो बजे स्नान के लिये नदी पर ले जाया गया। पानी में हाथियों की मस्ती व शरारत के अदभुत नजारे भी यहां देखने को मिले। कोलम्बो में हमें शहर से 11 किलोमीटर दक्षिण में माउण्ट लावण्या में ठहराया गया। गॉल मार्ग पर समुद्री तट पर बने इस बीच रिसॉर्ट में कभी अंग्रेज गवर्नर रहते थे। लावण्या नामक स्थानीय लडकी के साथ उनके प्रेम सम्बन्धों में इस तट की गवाही थी। उसी के नाम पर इस स्थान का नाम पडा। शाम को डिनर पर हमारी मुलाकात श्रीलंका पर्यटन के सहायक निदेशक अशोक परेरा और जनसम्पर्क अधिकारी महिका से हुई। श्रीलंका में हमारी यह अन्तिम शाम थी। लहरों की आवाज, नजदीक ही पर्यटकों की पार्टी, समुद्र में कोलम्बो का प्रतिबिम्ब शाम को यादगार बना रहा था।

वन्य जीवन

जंगली हाथी, चीते, कछुए, मोर- क्या कुछ नहीं है इस छोटे से द्वीप समूह पर। विश्व के सर्वाधिक जैव विविध धनी देशों में श्रीलंका का प्रमुख स्थान है। विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों और पशु-पक्षियों से समृद्ध श्रीलंका में तेरह राष्ट्रीय पार्क और सौ से अधिक अन्य वन्य संरक्षित क्षेत्र हैं। यह भी माना जाता है कि ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में विश्व की पहली वाइल्ड लाइफ वर्ल्ड सेंचुरी यहीं बनाई गई थी। श्रीलंका के हाथी अफ्रीकी जाति की तुलना में कुछ छोटे आकार के होते हैं। ‘पीनावाला एलीफेंट आरफेंज’ के अलावा याला नेशनल पार्क में तेंदुओं की इतनी प्रजातियां और संख्या है कि विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेंचुरी में इसकी गिनती होती है। श्रीलंका को बर्ड पैराडाइज के रूप में भी विश्व में जाना जाता है। श्रीलंका के केवल छह राष्ट्रीय पार्कों में रहने और खाने-पीने के लिये खूबसूरत लॉज और रेसॉर्ट्स बने हैं जहां आप प्रकृति का लुत्फ उठा सकते हैं।

प्रमुख बीच

पर्यटन के नजरिये से अगर श्रीलंका को देखें तो लगभग एक हजार किलोमीटर से लम्बा रेतीला समुद्री तट जीवन में एक नया संचार पैदा करता है। यदि मौसम के हिसाब से देखें तो नवम्बर से मार्च तक पश्चिमी और दक्षिणी तटों की सुन्दरता का जवाब नहीं। वही अप्रैल से अक्टूबर तक दक्षिण पश्चिम मानसून के दौरान समुद्री बीच का मजा पूर्वी तट पर भरपूर लिया जा सकता है।

मुख्य भोजन

स्थानीय व्यंजनों, फलों व मसालों की श्रीलंका में कोई कमी नहीं है। श्रीलंकाई भोजन में भारतीयों के साथ साथ चीनी, अरबी और कुछ यूरोपियन देशों के खान-पान का मिश्रण भी देखा जा सकता है। आमतौर पर चावल और करी (कोई एक सब्जी) हर घर में खाया जाने वाला मुख्य पदार्थ है। इसमें सब्जी की जगह फिश या मीट ज्यादातर जगह देखने को मिलता है। सुबह का नाश्ता, लंच या डिनर मुख्य भोजन आमतौर पर इसी रूप में होता है। श्रीलंका में मसालों की प्रचुरता भी एक कारण है कि यहां व्यंजन काफी चटपटे बनाये जाते हैं। लाल मिर्च और काली मिर्च का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। श्रीलंका में एक प्रथा यह भी खास है कि पश्चिमी सभ्यता के विपरीत एक बार में ही आपको भोजन लेना है। खास अवसरों पर नारियल मिल्क और मिर्च मसाले डालकर ‘येलो राइस’ पकाया जाता है। इस ‘येलो राइस’ में काजू, अन्य सूखे मेवे व उबले हुए अण्डे के पीस भी मिलाये जाते हैं। यहां मनाये जाने वाले त्यौहारों पर खासतौर पर ‘कडी भात’ भी बनता है। लेकिन यहां ‘कडी भात’ का अभिप्राय ‘दूध चावल’ से है। हालांकि सैलानियों के लिये यहां का सी-फूड भी खास आकर्षण है।

कैसे पहुंचें

श्रीलंका का प्रमुख हवाई अड्डा भंडारनायके इंटरनेशनल एयरपोर्ट कटनायके नामक स्थान पर है। कोलम्बो से लगभग 60 किलोमीटर दूरी पर स्थित एयरपोर्ट से विश्व के सभी प्रमुख देशों के लिये उडानें उपलब्ध हैं। भारत में नई दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई से श्रीलंका की उडानें उपलब्ध हैं। श्रीलंका एयर लाइंस, इंडियन और जेट की उडानें श्रीलंका के लिये सेवा दे रही हैं। श्रीलंका में किसी भी शहर में जाने के लिये कटनायके एयरपोर्ट से सडक मार्ग ही बेहतर विकल्प है।

कहां ठहरें

श्रीलंका जाने वाले ज्यादातर सैलानी बेरूवेला, बेनटोटा, कैंडी अथवा कोलम्बो में ठहरते हैं। ‘सी बीच’ का सर्वाधिक मजा बेरूवेला और बेनटोटा में ठहरने पर मिलता है जबकि पहाडी सौन्दर्य की अनूठी छटा कैंडी के होटलों में ठहरने से मिलती है। आधुनिक शहर का लुत्फ आपको कोलम्बो में मिल सकता है। सभी शहरों में बेहतर और बजट होटलों की कमी नहीं है। श्रीलंका घूमने का मजेदार मौसम अक्टूबर से अप्रैल-मई तक है। शेष दिनों में आर्द्रता का प्रतिशत अधिक रहता है। सर्दी अधिक नहीं पडती। गर्मियों में अधिकतम तापमान 30 से 32 डिग्री सेल्शियस तक रहता है।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 29 जून 2008 को प्रकाशित हुआ था।


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