रविवार, जून 19, 2011

नाहन और रेणुका झील

लेख: संतोष उत्सुक

बडे-छोटे होटल, ब्रांडेड बाजार, ट्रैफिक की चिल्लपौं में घूमने, थकने, फिर पछताने का मजा तो आप काफी ले लेते हैं, अब जरा जिंदगी में सुकून की तलाश में चला जाये। कुछ दिन के लिये कहीं और ... ऐसी जगह जहां आप महज गुनगुना नहीं बल्कि खुलकर गा सकें- ‘दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन....’

बरसात के पनीले मौसम के जाते-जाते हल्की सर्दियां आने की तैयारी में होती हैं। घुमक्कडी के शौकीन इस मौसम को बेहद पसन्द करते हैं। पहाडों पर पसर चुका हरियाली व सौम्यता भरा पर्यावरण हमेशा की मानिंद उन्हें बुलाने लगता है, मगर अक्सर उन्हीं पुराने पर्यटक स्थलों के नाम दिमाग में चस्पा रहते हैं। मसूरी, मनाली, कुल्लू, शिमला, चैल वगैरह। यहां पर्यटक बार-बार जा चुके होते हैं। उन्हें पता है बढती आबादी, वाहनों की फौज, कम पडती जन सुविधाओं के कारण वह मजा नहीं आता जो इतनी दूर से आकर समय लगाकर व पैसा खर्च कर आना चाहिये।

सरकार भी क्या-क्या करे। बेचारी अपना ‘सर’ बचाने व ‘कार’ चलाते रहने में बेहद व्यस्त रहती है। तभी तो ऐसी अनेक जगहें छूट जाती हैं जहां अगर थोडी तवज्जो दी जाये, प्रचार किया जाये तो पर्यटक सहज आनन्द उठा सकते हैं।

चण्डीगढ से 90 किलोमीटर दूर शिवालिक पहाडियों में समुद्र तल से 933 मीटर ऊंचाई पर 1621 में बसाया गया शहर है नाहन। जब विकास ने कुदरत के साथ बदतमीजी नहीं की थी, उस समय हर मौसम को खुशगवार रखने वाले कस्बे नाहन को हिमाचल का बैंगलोर कहा जाता था। मौसम में तमाम तब्दीलियां सहने के बाद आज भी नाहन का मौसम हिमाचल के चुनिंदा शहरों के बढिया मौसमों में शुमार है।

नाहन को हम तालाबों का शहर कह सकते हैं। यहां बढिया बात यह है कि पूरे शहर को चंद घण्टों में घूमा जा सकता है। यहां की दुबली पतली गलियां, बाजार व छतें तक आवारगी आसान करती हैं। पैदल चलना पडता है क्योंकि लोकल ट्रांसपोर्ट नहीं, यहां तक कि थ्री व्हीलर भी नहीं। पुराने बाजार में शॉपिंग पैदल करिये, यहां वाहन मना हैं। अपना सामान खुद उठाइये या मजदूर से।

नाहन की शामें रोमांटिक व सौम्य हैं। खासकर बारिश के बाद निखरकर नयनाभिराम रंग व रूप बदलता सूर्यास्त व रात में चण्डीगढ, पंचकुला, यमुनानगर व आसपास की रोशनियां देखने का लुत्फ। प्रकृति, कला, संस्कृति, साहित्य, सर्वधर्म सदभाव, सहजता व संतुष्टि भरे नगर नाहन में मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारा व चर्च मौजूद हैं। नाहन की रौनक-ए-शाम चौगान के नाम होती है। जिंदगी की सब चहक यहां होती हैं।

नाहन में ठहरने के लिये सर्किट हाउस, पीडब्ल्यूडी व म्यूनिसिपल रेस्ट हाउस, एसएफडीए व अनेक प्राइवेट रिहायशगाहें हैं। आप कहीं भी रुकें आपकी सुबह निर्मल आनन्द से लबरेज होगी। यहां स्थित लगभग 120 बरस पुराने रानीताल बाग में सुबह की सैर भी हो सकती है और शाम को बोटिंग भी। यदि आप सचमुच नाहन प्रवास को चिरस्मरणीय बनाना चाहते हैं तो पर्यावरण समिति के विशिष्ट प्रयास विला राउण्ड स्थित जॉगर्स पार्क में घूमकर मुफ्त में स्वास्थ्य की ढेर सी नेमतें बटोर लेनी चाहिये। यहां सैंकडों लोग रोज ऐसा करते हैं।

नाहन आयें तो समय निकालकर आसपास की एकाकी जगहें भी घूमी जा सकती हैं मगर एक दिन निकालकर रेणुका जरूर हो आना चाहिये। नाहन से शिमला रोड होते हुए नौ किलोमीटर दूर दोसडका नामक जगह से जो सडक दायें मुडती है, वो रेणुका ले जाती है। यहां से थोडा आगे जमटा है जहां से अडोस पडोस का विहंगम नजारा देखकर आनन्द आता है। बारिश हो चुकी हो तो बादलों के हुजूम यहां पहाडियों की तलहटी से निकलकर मीलों तक फैले रहते हैं। जमटा में विकास करवट ले रहा है। यहां महंगे रिसॉर्ट भी हैं जहां हर सप्ताहान्त में दिल्ली जैसी जगहों से आने वालों की एडवांस बुकिंग रहती है। यहां रुकेंगे तो भूलेंगे नहीं। आम यात्री के लिये मजा महंगा रहेगा।

जमटा से सडक उतरती है। सामने यहां-वहां बसे पहाडी गांव, सीढीनुमा खेत, किस्म-किस्म के दरख्त, स्वास्थ्यवर्द्धक चीड की स्वस्थ हवा, जंगली फूलों से लदे पेड-पौधे। पूरा रास्ता हरा-भरा सर्पीला है। रास्ते में बाबा बडोलिया आकर्षक स्टॉपेज है। पुल के दायें तरफ मन्दिर, ऊपर पहाडी से गिरता मौसमी झरना, बायें तरफ टेढी-मेढी बहती पहाडी नदी, किनारे घरौंदों में काम निपटाती गृहणियां। आगे चलते हैं, फिर एक पुल। पडोस में बहती नदी के साथ-साथ चल रहे हों तो ददाहू नामक कस्बा आता है। यहां खाने पीने के लिये एक दो बढिया जगहें हैं।

यहां से एक लम्बा पुल पार कर हम रेणुका झील के पहलू में पहुंचते हैं। रेणुका हिमाचल की ही नहीं एशिया की प्राकृतिक झीलों में खास मुकाम रखती है। लगभग दो किलोमीटर के क्षेत्र में फैली इस झील के पास पूरा एकांत है। पैदल इसकी परिक्रमा करना चाहें तो अनेक पक्षियों की चहचाहट, हरियाली में उगी जडी-बूटियों से परिचय हो सकता है। बडे-छोटे पेड पर्यावरण को सुखद बनाते हैं, विशेषकर खजूर के वृक्ष। समुद्र तल से 660 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस झील में फुदकती हजारों महाशीर मछलियां छोटे-बडे सभी के साथ दिल का रिश्ता कायम कर लेती हैं। उन्हें यहां बिक रहे आटे की गोलियां खिलाकर व पडोस में स्थित मन्दिरों व मठों में शीश झुकाकर पर्यटक अपनी धार्मिक प्रवृत्ति को भी संतुष्ट कर लेते हैं। भगवान परशुराम व माता रेणुका का मन्दिर विशेष है। यहां झील में मछली पकडना वर्जित है व मांसाहार करना भी।

बच्चों के लिये यहां मिनी चिडियाघर है और दूसरा खास आकर्षण है बब्बर शेर। रेणुका की लायन सफारी कई एकड में फैली है। झील के किनारे हिमाचल पर्यटन निगम का होटल रेणुका व काफी पुराना गेस्ट हाउस भी है। एक रात झील के सानिध्य में बिताई जाये और यह रात चांदनी में लिपटी हो तो आप अपने साथ या अपने खासमखास के साथ एक हो जाने में कितने ही यादगार लम्हे गुजार सकते हैं। यह मौका भीड, वाहन और इमारतों के साये में कभी सम्भव नहीं।

जरूरी फोन- जिला लोक सम्पर्क अधिकारी सिरमौर नाहन- 1702-225024

नई जगह जाकर नये अनुभव, नये आनन्द व नये परिचित हमारे जीवन में आते हैं इसलिये लकीर की फकीरी छोडकर देखिये इस बार।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 26 अक्टूबर 2008 को प्रकाशित हुआ था।

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