सोमवार, जून 20, 2011

गढवाल के बुग्याल

लेख: रविशंकर जुगरान

कल्पना कीजिये आप हजारों फीट की ऊंचाई पर मीलों तक फैले हरे मखमली घास के ढलाऊ मैदान पर टहल रहे हों। आपके ठीक सामने हाथ बढाकर बस छू लेने लायक बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियां हों। आसमान हर पल रंग बदल रहा हो, आप जमीन पर जहां भी नजर दौडाएं वहां आपको तरह-तरह के मंजर दे, तो निसंदेह यह दुनिया आपको किसी स्वप्नलोक से कम नहीं लगेगी। हिमशिखरों की तलहटी में जहां टिम्बर लाइन (यानी पेडों की कतारें) समाप्त हो जाती हैं वहां से हरे मखमली घास के मैदान शुरू होने लगते हैं। आमतौर पर ये 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित होते हैं। गढवाल हिमालय में इन मैदानों को बुग्याल कहा जाता है।

बुग्याल हिम रेखा और वृक्ष रेखा के बीच का क्षेत्र होता है। स्थानीय लोगों और मवेशियों के लिये ये चरागाह का काम देते हैं तो बंजारों, घुमन्तुओं और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिये आराम की जगह व कैम्पसाइट का। गर्मियों की मखमली घास पर सर्दियों में जब बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है तो ये बुग्याल स्कीइंग व अन्य बर्फानी खेलों का अड्डा बन जाते हैं। गढवाल के लगभग हर ट्रैकिंग रूट पर आपको इस तरह के बुग्याल मिल जायेंगे। कई बुग्याल तो इतने लोकप्रिय हो चुके हैं कि अपने आप में सैलानियों का आकर्षण बन चुके हैं। जब बर्फ पिघल चुकी होती है तो बरसात में नहाये वातावरण में हरियाली छाई रहती है। पर्वत व घाटियां भांति-भांति के फूलों व वनस्पतियों से लकदक रहती हैं। अपनी विविधता, जटिलता और सुन्दरता के कारण ही ये बुग्याल घुमक्कडी के शौकीनों के लिये हमेशा से आकर्षण का केंद्र रहे हैं। मीलों तक फैले मखमली घास के इन ढलुआ मैदानों पर विश्वभर से प्रकृति प्रेमी सैर करने पहुंचते हैं।

इनकी खूबसूरती यही है कि हर मौसम में आपको इन पर नया रंग दिखेगा और नया नजारा। बरसात के बाद इन ढलुआ मैदानों पर जगह-जगह रंग-बिरंगे हंसते हुए फूल आपका स्वागत करते दिखाई देंगे। बुग्यालों में पौधे एक निश्चित ऊंचाई तक ही बढते हैं। जलवायु के अनुसार ये ज्यादा ऊंचाई वाले नहीं होते। यही वजह है कि इन पर चलना बिल्कुल गद्दे पर चलना जैसा लगता है।

यूं तो गढवाल की वादियों में कई छोटे-बडे बुग्याल पाये जाते हैं, लेकिन लोगों के बीच जो सबसे ज्यादा मशहूर हुए हैं, उनमें बेदिनी बुग्याल, पवालीकांठा, चोपता, औली, गुरसों, बंशीनारायण और हर की दून प्रमुख हैं। इन बुग्यालों में रतनजोत, कलंक, वज्रदन्ती, अतीष, हत्थाजडी जैसी कई बेशकीमती औषधि युक्त जडी-बूटियां भी पाई जाती हैं। इसके साथ-साथ हिमालयी भेड, हिरन, मोनल, कस्तूरी मृग और धोरड जैसे जानवर भी देखे जा सकते हैं। पंचकेदार यानी केदारनाथ, कल्पेश्वर, मदमहेश्वर, तुंगनाथ और रुद्रनाथ जाने के रास्ते पर कई बुग्याल पडते हैं।

प्रसिद्ध बेदिनी बुग्याल रूपकुण्ड जाने के रास्ते पर पडता है। 3354 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस बुग्याल तक पहुंचने के लिये आपको ऋषिकेश से कर्णप्रयाग, ग्वालदम, मंदोली होते हुए वाण पहुंचना होगा। वाण से घने जंगलों के बीच गुजरते हुए करीब 10 किलोमीटर की चढाई के बाद आप बेदिनी के सौंदर्य का लुत्फ ले सकते हैं। इस बुग्याल के बीचोंबीच फैली झील यहां के सौंदर्य में चार चांद लगा देती है।

गढवाल का स्विट्जरलैण्ड कहा जाने वाला चोपता बुग्याल 2900 मीटर की ऊंचाई पर गोपेश्वर-ऊखीमठ-केदारनाथ मार्ग पर स्थित है। चोपता से हिमालय की चोटियों के समीपता से दर्शन किये जा सकते हैं। चोपता से ही आठ किलोमीटर की दूरी पर दुगलबिट्ठा नामक बुग्याल है। यहां कोई भी पर्यटक आसानी से पहुंच सकता है।

चमोली जिले के जोशीमठ से 12 किलोमीटर की दूरी पर 2600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है औली बुग्याल। साहसिक खेल स्कीइंग का ये एक बडा सेंटर है। सर्दियों में यहां के ढलानों पर स्कीइंग चलती है और गर्मियों में यहां खिले तरह-तरह के फूल सैलानियों के आकर्षण का केंद्र होते हैं।

औली से ही 15 किलोमीटर की दूरी पर एक और आकर्षक बुग्याल है क्वारी। यह भी अत्यन्त दर्शनीय बुग्याल है। चमोली और बागेश्वर की सीमा से लगा बगजी बुग्याल भी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। समुद्र तल से 12000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह बुग्याल करीब चार किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। यहां से हिमालय की सतोपंथ, चौखम्भा, नन्दादेवी और त्रिशूली जैसी चोटियों के समीपता से दर्शन होते हैं।

टिहरी जिले में स्थित पवालीकांठा बुग्याल भी ट्रेकिंग के शौकीनों के बीच जाना जाता है। 11000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह बुग्याल सम्भवतया गढवाल का सबसे बडा बुग्याल है। यहां से केदारनाथ के लिये भी रास्ता जाता है। कुछ ही दूरी पर मट्या बुग्याल है जो स्कीइंग के लिये काफी उपयुक्त है। यहां पाई जाने वाली दुर्लभ प्रजाति की वनस्पतियां वैज्ञानिकों के लिये शोध का विषय बनी रहती हैं।

उत्तरकाशी गंगोत्री मार्ग पर भटवाडी से रैथल या बारसू गांव होते हुए आप दयारा बुग्याल पहुंच सकते हैं। 10500 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह बुग्याल भी जन्नत की सैर करने जैसा ही है।

ऐसे न जाने गढवाल में कितने ही बुग्याल हैं जिनके बारे में लोगों को अभी तक पता नहीं है। इनकी समूची सुन्दरता को केवल वहां जाकर महसूस किया जा सकता है। हालांकि हजारों फीट की ऊंचाई पर स्थित इन स्थानों तक पहुंचना हर किसी के लिये सम्भव नहीं है।

कब व कैसे

इन बुग्यालों तक पहुंचने के लिये आप देश के किसी भी कोने से बस या रेल से ऋषिकेश या कोटद्वार पहुंच सकते हैं। ऋषिकेश या कोटद्वार पहुंचकर आप बस या टैक्सी से चमोली, टिहरी और उत्तरकाशी पहुंच सकते हैं। आप हवाई मार्ग से भी ऋषिकेश के निकट जौली ग्रांट हवाई अड्डा उतर सकते हैं। इन छोटे पहाडी नगरों तक पहुंचने के लिये बस या टैक्सी आसानी से मिल जाती है। इन छोटे पहाडी नगरों पर पहुंचकर आप यहां के परिवेश के बारे में जानकारी ले सकते हैं। इन्हीं जगहों से ट्रैकिंग के जरिये बुग्यालों की स्वप्निल दुनिया की सैर की जाती है। यह रोमांच की यात्रा है।

इन इलाकों में बारिश के मौसम में जाना ठीक नहीं है। हरियाली और फूलों का मजा लेना हो तो मई-जून का समय सबसे बढिया है। सितम्बर-अक्टूबर में बारिश के बाद पूरी प्रकृति धुली-धुली सी लगती है। इस समय तक बुग्यालों का रंग बदल चुका होता है। उसके बाद बर्फ पडना शुरू हो जाती है। कई रास्ते बन्द हो जाते हैं तो कई बुग्याल स्कीइंग के जरिये सर्दियों में भी अपनी रौनक बनाये रहते हैं। मौसम के हिसाब से भी आपको अपनी तैयारी करनी होगी।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 30 नवम्बर 2008 को प्रकाशित हुआ था।


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