शुक्रवार, जून 17, 2011

हरसिल- जादुई सम्मोहन का सौंदर्य

लेख: रविशंकर जुगरान

हिमालय का अलौकिक सौंदर्य, उससे निकलती कल-कल छल-छल नदियों का संगम, मीलों तक फैला वन क्षेत्र और सुरम्य घाटियां उत्तराखण्ड की सबसे बडी धरोहर हैं। प्रकृति का ये अनुपम उपहार उसे शेष दुनिया से अलग पहचान देता है। यही वजह है कि यहां हर मौसम में सैलानियों की आवाजाही रहती है। गढवाल की ऊंचाइयों में प्रकृति के हाथों बेहिसाब सुन्दरता बिखरी पडी है।

गढवाल के अधिकांश सौंदर्य स्थल दुर्गम पर्वतों में स्थित हैं जहां पहुंचना सबके लिये आसान नहीं है। यही वजह है कि प्रकृति प्रेमी पर्यटक इन जगहों पर पहुंच नहीं पाते हैं। लेकिन ऐसे भी अनेक पर्यटक स्थल हैं जहां सभी प्राकृतिक विषमता और दुरूहता खत्म हो जाती है। वहां पहुंचना सहज और सुगम है। यही कारण है कि इन सुविधापूर्ण प्राकृतिक स्थलों पर ज्यादा पर्यटक पहुंचते हैं। प्रकृति की ऐसी ही एक खूबसूरत उपत्यका है हरसिल।

उत्तरकाशी-गंगोत्री मार्ग के मध्य स्थित हरसिल समुद्री सतह से 7860 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। हरसिल उत्तरकाशी से 73 किलोमीटर आगे और गंगोत्री से 25 किलोमीटर पीछे सघन हरियाली से आच्छादित है। घाटी के सीने पर भागीरथी का शान्त और अविरल प्रवाह हर किसी को आनन्दित करता है। पूरी घाटी में नदी-नालों और जलप्रपातों की भरमार है। जहां देखिये दूधिया जलधाराएं इस घाटी का मौन तोडने में डटी हैं। नदी झरनों के सौंदर्य के साथ-साथ इस घाटी के सघन देवदार के जंगल मन को मोहते हैं। जहां निगाह डालिये इन पेडों का जमघट लगा है। यहां पहुंचकर पर्यटक इन पेडों की छांव तले अपनी थकान को मिटाता है। जंगलों से थोडा ऊपर निगाह पडते ही आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। हिमाच्छादित पर्वतों का आकर्षण तो कहने ही क्या। ढलानों पर फैले ग्लेशियरों की छटा तो दिलकश है ही।

इस स्थान की खूबसूरती का जादू अपने जमाने की सुपरहिट फिल्म राम तेरी गंगा मैली में देखा जा सकता है। बॉलीवुड के सबसे बडे शोमैन रहे राजकपूर एक बार जब गंगोत्री घूमने आये थे तो हरसिल का जादुई आकर्षण उन्हें ऐसा भाया कि उन्होंने यहां की वादियों में फिल्म ही बना डाली- राम तेरी गंगा मैली। इस फिल्म में हरसिल की वादियों को जिस सजीवता से दिखाया गया है वो देखते ही बनता है। यही के एक झरने में फिल्म की नायिका मंदाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया है। तब से इस झरने का नाम मंदाकिनी फॉल पड गया है।

इस घाटी से इतिहास के रोचक पहलू भी जुडे हैं। एक गोरे साहब थे फेडरिक विल्सन जो ईस्ट इण्डिया कम्पनी में कर्मचारी थे। वह थे तो इंग्लैण्ड वासी लेकिन एक बार जब वह मसूरी घूमने आये तो हरसिल की वादियों में पहुंच गये। उन्हें यह जगह इतनी भायी कि उन्होंने सरकारी नौकरी तक छोड दी और यही बसने का मन बना लिया। स्थानीय लोगों के साथ वह जल्द ही घुल-मिल गये और गढवाली बोली भी सीख ली। उन्होंने अपने रहने के लिये यहां एक बंगला भी बनाया। नजदीक के मुखबा गांव की एक लडकी से उन्होंने शादी भी कर डाली। विल्सन ने यहां इंग्लैण्ड से सेब के पौधे मंगाकर लगाये जो खूब फले-फूले। आज भी यहां सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से प्रसिद्ध है।

ऋषिकेश से हरसिल की लम्बी यात्रा के बाद हरसिल की वादियों का बसेरा किसी के लिये भी अविस्मरणीय यादगार बन जाता है। भोजपत्र के पेड और देवदार के खूबसूरत जंगलों की तलहटी में बसे हरसिल की सुन्दरता पर बगल में बहती भागीरथी और आसपास के झरने चार चांद लगा देते हैं। गंगोत्री जाने वाले ज्यादातर तीर्थ यात्री हरसिल की इस खूबसूरती का लुत्फ उठाने के लिये यहां रुकते हैं। अप्रैल से अक्टूबर तक हरसिल आना आसान है लेकिन बर्फबारी के चलते नवम्बर से मार्च तक यहां इक्के-दुक्के सैलानी ही पहुंच पाते हैं। हरसिल की वादियों का सौन्दर्य इन्हीं महीनों में खिलता है जब यहां की पहाडियां और पेड बर्फ से लकदक रहते हैं। गौमुख से निकलने वाली भागीरथी का शान्त स्वभाव यहां देखने लायक है।

यहां से कुछ ही दूरी पर डोडीताल है। इस ताल में रंगीन मछलियां ट्राडा भी पर्यटकों के लिये आकर्षण का केंद्र हैं। इन ट्राडा मछलियों को लाने का श्रेय भी विल्सन को ही जाता है। बगोरी, घराली, मुखबा, झाला और पुराली गांव इस इलाके की समृद्ध संस्कृति और इतिहास को समेटे हैं। हरसिल देश की सुरक्षा के नाम पर खींची गई इनर लाइन में रखा गया है जहां विदेशी पर्यटकों के ठहरने पर प्रतिबन्ध है। विदेशी पर्यटक हरसिल होकर गंगोत्री, गौमुख और तपोवन सहित हिमालय की चोटियों में तो जा सकते हैं लेकिन हरसिल में नहीं ठहर सकते।

हरसिल से सात किलोमीटर की दूरी पर सात तालों का दृश्य विस्मयकारी है। इन्हें सातताल कहा जाता है। हिमालय की गोद में एक श्रंखला पर पंक्तिबद्ध फैली इन झीलों के दमकते दर्पण में पर्वत, आसमान और बादलों की परछाइयां कंपकपाती सी दिखती हैं। ये झील 9000 फीट की ऊंचाई पर फैली हैं। इन झीलों तक पहुंचने के रास्ते में प्रकृति का आप नया ही रूप देख सकते हैं। यहां पहुंचकर आप प्रकृति का संगीत सुनते हुए झील के विस्तृत सुनहरे किनारों पर घूम सकते हैं।

कैसे पहुंचे

हरसिल की खूबसूरत वादियों तक पहुंचने के लिये सैलानियों को सबसे पहले ऋषिकेश पहुंचना होता है। ऋषिकेश देश के हर कोने से रेल और बस मार्ग से जुडा है। ऋषिकेश पहुंचने के बाद आप बस या टैक्सी द्वारा 218 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यहां पहुंच सकते हैं।

अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहें तो नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट है। जौलीग्रांट से बस या टैक्सी द्वारा 235 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है।

समय और सीजन

यूं तो बरसात के बाद जब प्रकृति अपने नये रूप में खिली होती है तो तब यहां का लुत्फ उठाया जा सकता है। लेकिन नवम्बर-दिसम्बर के महीने में जब यहां बर्फ की चादर जमी होती है तो यहां का सौन्दर्य और भी खिल उठता है। बर्फबारी के शौकीन इन दिनों यहां पहुंचते हैं।

पर्यटकों को यात्रा के दौरान इस बात का ख्याल रखना चाहिये कि समय और जो भी हो, हरदम गरम कपडे साथ होने चाहिये। यहां पर खाने-पीने के लिये साफ और सस्ते होटल आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं जो आपके बजट के अनुरूप होते हैं। हरसिल में ठहरने के लिये लोकनिर्माण विभाग का एक बंगला, पर्यटक आवास गृह और स्थानीय निजी होटल हैं। यहां खाने-पीने की पर्याप्त सुविधाएं हैं। गंगोत्री जाने वाले यात्री कुछ देर यहां रुककर अपनी थकान मिटाते हैं और हरसिल के सौन्दर्य का लुत्फ लेते हैं।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 28 सितम्बर 2008 को प्रकाशित हुआ था।


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