शुक्रवार, जून 03, 2011

पांडिचेरी- जहां फ्रांस की बयार बहती है

यदि सैर-सपाटे के लिये समुद्र तट जाना हो, यदि सांस्कृतिक विविधता का नजारा लेना हो, यदि आपको किसी स्थान पर विदेशी शासन के समय की जीवन शैली का प्रभाव देखना हो और साथ ही आध्यात्मिक अनुशासन और अदृश्य की साधना की अनुभूति भी करनी हो तो पांडिचेरी (अब पुडुचेरी) से अच्छी कोई दूसरी जगह नहीं। पूर्वी तट पर तमिलनाडु से मिला हुआ पांडिचेरी आपकी इन सभी इच्छाओं को पूरा करेगा। जयश्री पुरवार का यात्रा वृत्तान्त:

पांडिचेरी पहले फ्रांसीसी शासन के अधीन था। सितम्बर 2006 से इसका नाम पुडुचेरी कर दिया गया है जिसका तमिल भाषा में अर्थ है नया गांव। इसकी सबसे ज्यादा चर्चा लम्बे समय तक फ्रांसीसी कॉलोनी के रूप में रहने और महर्षि अरविन्द द्वारा स्थापित आश्रम के कारण है। स्थापत्य कला और संस्कृति की दृष्टि से यह एक धनी नगरी है।

चेन्नई से ईसीआर राजमार्ग पांडिचेरी तक जाता है। इसे भारत के सबसे खूबसूरत रास्तों में गिना जा सकता है। यह ईस्ट कोस्ट रोड एक्सप्रेस वे समुद्र के समानांतर है। इस सडक पर सफर के आनन्द का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पर कारें ऐसे ही दौडती हैं मानों वे बर्फ पर स्केटिंग कर रही हों। इस रास्ते से चेन्नई से ढाई-तीन घण्टे में पांडिचेरी (दूरी 164 किलोमीटर) पहुंचा जा सकता है। रास्ता केवल बढिया सडक और साथ-साथ चलते समुद्र की वजह से ही खूबसूरत नहीं है। रास्ते के पडाव भी उतने ही आकर्षक हैं। जैसे कि आप रास्ते में चोलामण्डलम में ग्रामीण हस्तकला का नमूना देख सकते हैं तो दक्षिणाचित्र में दक्षिण भारत की कला संस्कृति, जीवन शैली और स्थापत्य कला के विविध रूपों को देख सकते हैं। यह एक संग्रहालय सरीखा है।

रास्ते में मगरमच्छों का बैंक है जहां सैकडों मगरमच्छ एक-दूसरे से लिपटे देखे जा सकते हैं। चूंकि यहां मगरमच्छों का कृत्रिम प्रजनन केन्द्र है, इसलिये आप केवल इन्हें नजदीक से देख सकते हैं बल्कि नवजातों को गोद में भी उठा सकते हैं। ईसीआर पर महाबलिपुरम के मन्दिर भी दर्शनीय हैं जो वास्तु कला की सुन्दरता के कारण यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल किये जा चुके हैं।

इतनी सारी जगहों को देखते हुए हमने चेन्नई से पांडिचेरी की ढाई घण्टे की यात्रा को लगभग बारह घण्टे में पूरा किया। मार्ग के दर्शनीय स्थलों का आकर्षण ही ऐसा था। हम शान्त शालीन पांडिचेरी नगर में पहुंचे तो लगा कि विदेश में गये हैं। पांडिचेरी देश के अन्य नगरों से अलग सुनियोजित, सुव्यवस्थित और साफ-सुथरा नगर है। यहां दिन गरम होते हैं लेकिन शाम रात खुशनुमा होती हैं। आया सालभर जा सकता है लेकिन ज्यादातर लोग यहां आने के लिये गर्मियां खत्म होने का इंतजार करते हैं।

पांडिचेरी पर पुर्तगाल, नीदरलैंड और रोमन शासन भी रहा। वर्ष 1670 में फ्रांसीसी यहां गये थे और 1816 में पांडिचेरी पर फ्रांस का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हुआ। फ्रांसीसी शासन में डुप्ले पहला गवर्नर था। आज भी पांडिचेरी में डुप्ले की मूर्ति यहां फ्रांसीसी शासन की याद दिलाती है। हालांकि फ्रांस का असर केवल डुप्ले की प्रतिमा से नहीं बल्कि पांडिचेरी के समूचे रहन-सहन पर नजर आता है। उसकी संरचना ही फ्रांसीसी स्थापत्य कला के आधार पर की गई थी। सडकें और गलियां समानांतर हैं और सारी गलियां 90 डिग्री के कोण पर मिलती हैं।

ऊंची-ऊंची दीवारों वाले भवन पांडिचेरी इमारतों की विशेषता हैं। भवनों के सामने खुली जगह नहीं है, दरवाजे सडक पर खुलते हैं लेकिन भीतर बडा और खुला आंगन है जिसके किनारे कमरे बने होते हैं। यहां गलियों के नाम आज भी फ्रांस के महान नागरिकों के नाम पर हैं। जैसे सेंट लुई स्ट्रीट, फैंकोस मार्टिन स्ट्रीट, रोमा रोलां स्ट्रीट, विक्टर सिमोनेल स्ट्रीट आदि। पूरा शहर एक नहर द्वारा दो भागों में विभाजित है- फ्रांसीसी या सफेद नगर और भारतीय या काला नगर। भारतीय भवनों में बरामदे सहित चौडे दरवाजे हैं। दोनों संस्कृतियों की वास्तुकला के संरक्षण का दायित्व इंटैक नामक संस्था ने ले रखा है जिसकी स्वीकृति के बिना यहां कोई भवन गिराने या निर्माण करने का कार्य नहीं हो सकता।

भारत 1947 में आजाद हुआ पर पांडिचेरी को 1 नवम्बर 1954 को आजादी मिली। लगभग 300 वर्ष तक फ्रांसीसी शासन के अधीन रहने के कारण यहां तमिल, तेलुगू मलयालम के साथ साथ फ्रांसीसी भाषा केवल प्रचलन में है बल्कि इसे सरकारी भाषा के रूप में भी मान्यता मिली हुई है। यहां फ्रांसीसी माध्यम के स्कूल हैं साथ ही फ्रांसीसी भाषा सिखाने वाले संस्थान भी। यहां रहने वाले अनेक तमिल फ्रांस के नागरिक हैं जो फ्रांस में नौकरी भी प्राप्त कर सकते हैं।

पांडिचेरी में हम सबसे पहले बीच रोड गये जो यहां का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। बीच रोड समुद्र के किनारे है जहां रोज शाम के समय भीड देखने लायक होती है। यहां समुद्र का पानी गहरा नीला है जिसकी ऊंची लहरों को तट से टकराते हुए और शोर मचाते हुए देखना खासा सुहावना लगता है। बीच रोड के अन्तिम छोर पर गांधी मंडपम है जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा है जो नक्काशी वाली छतरी और स्तंभों से घिरी है। गांधी प्रतिमा से कुछ दूर पर एक लाइट हाउस है और फ्रांस के अनजाने सैनिकों की याद में एक स्मारक भी। लाइट हाउस के पीछे आयी मंडपम नाम से एक फ्रांसीसी स्मारक है जो भारती पार्क के केन्द्र में है। आयी नामक एक उदार हृदय वेश्या ने यहां के लोगों के लिये एक तालाब खुदवाया था जिससे प्रभावित होकर नेपोलियन तृतीय ने इस स्मारक को बनवाया था। स्मारक के पास ही पांडिचेरी विधानसभा भवन है और दूसरी ओर राजभवन जिसमें पांडिचेरी के उपराज्यपाल रहते हैं और जो पहले फ्रेंच गवर्नर का निवास था। राज निवास के सामने म्यूजियम की इमारत है जिसमें रोमन काल से लेकर फ्रांसीसी काल तक के शिल्प वस्तुओं का संग्रह है।

पांडिचेरी के खूबसूरत चर्च यहां के पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र हैं। बीच रोड के बाईं तरफ इग्लाइज डी चर्च की सुन्दर इमारत है। दूसरी प्रसिद्ध चर्च है कोर डी जीसस चर्च। यहां ईसा मसीह के जीवन पर आधारित खूबसूरत ग्लास पेंटिंग्स हैं।

पांडिचेरी के पुराने शहर के मध्य में 1826 में स्थापित पुराना बोटैनिकल गार्डन है। इसका मुख्य गेट नक्काशीदार फ्रांसीसी शैली में है। यह दक्षिणी भारत के सबसे सुन्दर उद्यानों में से एक है। इसमें लगभग 1500 पौधों की प्रजातियां हैं। गार्डेन में संगीतमय फव्वारा शाम को दर्शकों का मनोरंजन करता है।

पांडिचेरी की यात्रा अधूरी ही रह जायेगी यदि भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और आध्यात्मिक साधक महर्षि अरविंद के आश्रम का हम दर्शन करें। शहर के पूर्वी दिशा में यह आश्रम है। आश्रम आसपास के अनेक भवनों को लेकर स्थापित है। 1926 में इसकी स्थापना योगी अरविंद ने की थी और इसका विस्तार फ्रांसीसी महिला मीरा अल्फासा ने किया जो बाद में मदर कहलाई गई। यह आधुनिक शहरी क्षेत्र में समरसतापूर्ण जीवन का एक जीवंत केंद्र है, दुनिया के विभिन्न देशों से आये हुए लोगों का घर है जो यहां आकर शान्ति प्राप्त करते हैं। आश्रम के मुख्य भवन में महर्षि अरविंद और मदर की श्वेत संगमरमर की सुगंधित पुष्पों से सुसज्जित समाधि है। दोनों ने इसी भवन में अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय बिताया। वर्ष 1968 में अरविंद के मानव एकता के आदर्श को मूर्त रूप देने के लिये मदर ने ऑरोविल नाम से एक अंतर्राष्ट्रीय नगर की स्थापना की। यह पांडिचेरी से 10 किलोमीटर की दूरी पर है। आश्रम से ऑरोविल के लिये बस चलती हैं। यह स्थान किसी एक देश या सम्प्रदाय का नहीं है बल्कि एक केंद्र है शान्ति और समरसता की स्थापना का। यहां देश-विदेश से लोग आते हैं और विविध गतिविधियों में भाग लेकर अपना मानसिक-आध्यात्मिक विकास करते हैं। यहां सेंटर ऑफ एजुकेशन में लगभग 400 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। यहां लगभग 15000 लोगों को रोजगार मिला हुआ है जो शिक्षा, चिकित्सा, कला, विज्ञान, हस्तशिल्प, ग्रामीण विकास, लघु उद्योग, अध्यात्म आदि विविध क्षेत्रों में काम करते हैं। इस अंतर्राष्ट्रीय नगर में भारत निवास भारत का राष्ट्रीय मण्डप है। नव निर्मित सुनहला, चमकता हुआ, विशाल गुम्बद के आकार का भवन मातृ मन्दिर है जो ऑरोविल की आत्मा है। यह अभी निर्माणाधीन है। यहां ऑरो बीच शान्त, सुन्दर और शहरी कोलाहल से दूर है। सागर का अनन्त स्वरूप मानव को रोमांचित करता है और सूर्योदय विशेष रूप से दर्शनीय है।

पांडिचेरी से केवल 8 किलोमीतर की दूरी पर चुन्नांबर में बैक वाटर है। यहां पर जल बिल्कुल स्वच्छ है, इसलिये नहाने के लिये यह सबसे अच्छी जगह है। कहा जाता है कि यहां तट पर बालू प्राचीन कालीन है। बे वाटर में बोटिंग की भी व्यवस्था है। यह पिकनिक मनाने के लिये भी बहुत अच्छी जगह है।

पांडिचेरी शहर को आधुनिकता का स्पर्श मिल चुका है। चमकते-दमकते मॉल, दुकानें, साइबर कैफे और साथ ही सैकडों होटल और रेस्तरां बनते जा रहे हैं। आम लोगों के लिये सस्ते भी हैं और खास लोगों के लिये महंगे होटल भी। खान-पान के मामले में भी तमाम तरह की विविधता यहां मिल जायेगी। समुद्र किनारे स्थानीय भोजन करें या शहर के किसी रेस्तरां में खालिस फ्रांसीसी, आनन्द दोनों में ही पूरा मिलेगा।

शहर के नवीन दर्शनीय स्थलों में पाम हाउस भी उल्लेखनीय है जहां एक कृत्रिम तालाब और पार्क है। पार्क में वृक्ष पर बने हुए घर हैं, इन पर चढने के लिये रस्सियों से बनी सीढी है जिससे घर के सामने की छोटी बालकनी तक पहुंचा जा सकता है। तो चलिये सागर तट का मजा लेने के लिये और साथ में विभिन्न सांस्कृतिक धरोहरों का आनन्द लेने के लिये पांडिचेरी जाने की योजना बना ही लीजिये।

कैसे पहुंचें

यहां पहुंचने का सबसे आसान रास्ता तो ट्रेन या हवाई जहाज से चेन्नई पहुंचकर वहां से बस या टैक्सी से पांडिचेरी पहुंचने का है। वैसे ट्रेन से 40 किलोमीटर दूर विल्लुपुरम तक भी आया जा सकता है।

पांडिचेरी छोटी रेल लाइन से विल्लुपुरम और चेन्नई से भी जुडा है लेकिन यह रेल सेवा तो लोकप्रिय है और ही नियमित। विल्लुपुरम और पांडिचेरी के बीच नियमित बस सेवा है। विल्लुपुरम बडी रेल लाइन से सभी बडे स्टेशनों से जुडा है। वैसे सडक मार्ग से पांडिचेरी अच्छी तरह से सभी पडोसी राज्यों से जुडा है। आप बंगलुरू या मदुरै होते हुए भी पांडिचेरी सकते हैं।

(अब पांडिचेरी बडी रेल लाइन से विल्लुपुरम से जुड गया है। पांडिचेरी के लिये चेन्नई से सीधी और नियमित ट्रेनें हैं। -नीरज जाट)

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 25 मई 2008 को प्रकाशित हुआ था।


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