शुक्रवार, जून 10, 2011

राजसी खातिरदारी का लुत्फ- देवीगढ

महलों का जीवन हमेशा आम लोगों के लिये रश्क का रहा है। राजसी ठाठ-बाट के किस्से सुने-सुनाये जाते हैं। नये दौर में राजपाट भले ही नहीं हैं लेकिन महल हैं और उनके ठाठ भी, बस अंदाज बदले बदले हैं। हैरीटेज रिसॉर्ट इसी शानो-शौकत को अनुभव करने का मौका देते हैं। इस खास मेहमाननवाजी का जायजा ले रहे हैं उपेन्द्र स्वामी:

दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पकडकर यदि आप उदयपुर के लिये रवाना हो जायें तो रास्ता कई रियासतों व महलों के निकट से होकर गुजरता है। जिन तीन हेरीटेज रिसॉर्ट का जिक्र हम कर रहे हैं, वे तीनों इसी रास्ते पर हैं। तीनों का इतिहास अलग-अलग और समय काल भी अलग-अलग। तीनों ही एक परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं।

दिल्ली से जाते हुए देवीगढ उदयपुर से 28 किलोमीटर पहले है। हरी-भरी अरावली पहाडियों की घाटियों में देलवाडा गांव में स्थित देवीगढ वाकई मन मोहने वाला है। देवीगढ हमेशा से उदयपुर में प्रवेश देने वाले तीन दर्रों में से एक की निगरानी करता रहा है। देवीगढ का एक समृद्ध इतिहास रहा है। महाराणा प्रताप के पूर्वज महाराणा रायमल ने राणा सज्जा सिंह को 15वीं सदी के अन्त में यह देलवाडा ठिकाना सौंपा था। देलवाडा राजघराना हमेशा उदयसिंह व महाराणा प्रताप के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लडता रहा। देवीगढ सज्जा सिंह के वंशजों ने 18वीं सदी के मध्य में बनवाया। कालान्तर में राजघराने के साथ-साथ यह महल भी अपनी चमक-दमक खोता रहा। हालत यह हो गई कि जर्जर महल को 1960 में वीरान छोड दिया गया। फिर 1984 में इसे लेखा पोद्दार और उनके बेटे अनुपम ने खरीद लिया जो भारत के शीर्ष कला संग्राहकों में गिने जाते हैं। पंद्रह साल तक हर स्तर पर कायाकल्प के बाद जो सामने आया, उसे खुद एक नायाब कलाकृति कहा जा सकता है। देवीगढ जो था और जो है, उसी में उसकी सबसे बडी कामयाबी है। इतिहास के एक ढांचे को आधुनिक मेजबानी की सीरत दे दी गई। इसीलिये इसे अतीत व भविष्य का संगम भी कहा जाता है।

देवीगढ इस बात का उदाहरण है कि अगर आज एक आधुनिक महल खडा किया जाये तो उसकी तस्वीर कैसी होगी। लेकिन इसके बावजूद महल का अहसास आपसे कभी जुदा नहीं होगा, बल्कि वहां की खातिरदारी आपको हमेशा एक खास होने का अहसास दिलाती रहेगी। यही वजह है कि देवीगढ केवल टिकने का ठिकाना नहीं बल्कि अपने आप में देखने लायक जगह है, एक ऐसी जगह जो मन व शरीर, दोनों को सुकून देती है। जहां आप चैन से कुछ वक्त गुजारने के लिये जायेंगे। इसमें काफी योगदान उस आवभगत का भी है जो यहां पहुंचते ही दरवाजे पर ही पेश होने वाले गुलाब के रस के साथ शुरू हो जाता है और कुछ श्रेय उस जगह का भी जहां देवीगढ स्थित है। चारों तरफ अरावली की हरी-भरी पहाडियों के बीच से गुजरती ठण्डी हवा झुलसती गर्मी के महीनों में भी आपको तरोताजा कर देती है। देवीगढ का पूरा निर्माण दालानों, टैरेस व बगीचों के इर्द-गिर्द हुआ है। इस हेरीटेज रिसॉर्ट में कुल 39 स्यूट हैं। सभी स्यूट अदभुत, आरामदेह और खूबसूरत हैं। साथ ही तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण हैं। पूरे महल में संगमरमर और अन्य बेशकीमती पत्थरों का खुलकर और बेहद कलात्मक अंदाज में इस्तेमाल किया गया है।

खास बात यह है कि कोई भी दो स्यूट एक जैसे नहीं हैं। आप सारे स्यूट देख लें, हरेक आपको दूसरे से अलग और खूबसूरत लगेगा। चाहे वह उनकी बैठक हो, बेडरूम हो, बाथरूम हो या अरावली की पहाडियों का नजारा देती बालकनी। वैसे स्यूट चार तरह के हैं। विशाल बगीचे के दोनों ओर गार्डन स्यूट हैं तो अलग-अलग लेवल पर पैलेस व अरावली स्यूट हैं। देवीगढ स्यूट या प्रेसिडेंशियल स्यूट अलग हैं जिसका अपना अलग काले संगमरमर का स्वीमिंग पूल और जैक्वॉजी है।

वैसे सबके लिये एक बडा स्वीमिंग पूल, जैक्वॉजी, हेल्थ क्लब, स्टीम-सौना, जिम, बिजनेस सेंटर, कांफ्रेंस रूम, पूल रूम वगैरा सबकुछ हैं। रेस्तरां एक है लेकिन वहां खालिस राजस्थानी से लेकर कांटिनेंटल तक हर किस्म का मेनू मिल जायेगा। खाने, खासतौर पर रात के खाने का असली मजा रेस्तरां में नहीं बल्कि कुछ खास जगहों पर है- जैसे कि रंगबिरंगे शीशे जडे शीशमहल में या फिर सब तरफ से हवा लेते हवा गोखडा में या देवीगढ के शाही परिवार के ध्यान की जगह रहे राम रूम में या जनाना खाना में या फिर छत के ऊपर। खासतौर पर आपके लिये सजा दस्तरखान हो, बल्ब की जगह मोमबत्तियां जल रही हों, गुलाब की पंखुडियां चारों तरफ बिखरी हों, सामने कोई बैठा कलाकार जल तरंग या बांसुरी बजा रहा हो और खास खिदमतगार आपकी हर इच्छा पूरी करने के लिये हाजिर हो तो आप यकीनन उस पल के लिये खुद को राजा महसूस करने लगेंगे। यहां के खास माहौल का ही आकर्षण है कि शादियों, बिजनेस कांफ्रेंसों और फिल्मों की शूटिंगों तक के लिये देवीगढ विशेष पसन्द बन गया है।

एक नजर में

देवीगढ जाने के लिये ट्रेन या हवाई जहाज से उदयपुर जाया जा सकता है, जहां से 45 मिनट का बस का सफर है। बस से जाने वाले सीधे देवीगढ के मुख्य द्वार पर भी उतर सकते हैं।

सितम्बर से मार्च तक का समय यहां जाने के लिये सबसे मुफीद है। वैसे गर्मियों में भी जायें तो यहां का मौसम राहत ही देगा, ऑफ सीजन की छूट मिलेगी सो अलग।

देवीगढ में समय कम ही पडेगा। वैसे चाहें तो हाथी-ऊंट की सवारी, पहाडियों में बाइकिंग, पिकनिक, ट्रैकिंग वगैरह का भी इंतजाम हो जाता है। उदयपुर न जाना चाहें तो आसपास नाथद्वारा, एकलिंगजी, नागदा आदि के मन्दिरों को देखा जा सकता है। जिस देलवाडा गांव में देवीगढ है, वहां भी 14वीं सदी के विख्यात जैन मन्दिर हैं। ज्यादा समय हाथ में रखने वालों के लिये उदयपुर के अलावा रणकपुर, कुम्भलगढ, हल्दीघाटी जाने के भी विकल्प हैं।

स्यूट के किराये प्रति व्यक्ति साढे सात हजार रुपये से शुरू है।

यह लेख दैनिक जागरण के यात्रा परिशिष्ट में 31 अगस्त 2008 को प्रकाशित हुआ था।

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