गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के मुहाने पर स्थित सुन्दरवन विश्व के दर्शनीय राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। अपने अनूठे प्राकृतिक सौन्दर्य और भरपूर वन्य जीवन के लिये प्रसिद्ध सुन्दरवन को विश्व विरासत का दर्जा दिया गया है। पूरी दुनिया में रॉयल बंगाल टाइगर (पैंथरा टिगरिस) की सर्वाधिक आबादी इसी क्षेत्र में निवास करती है। सुन्दरवन की सघन हरियाली, अपार जलराशि से घिरे द्वीप समूह और डेल्टाई मिट्टी कुदरत की अनूठी कारीगरी को रूपांकित करती है।
पश्चिमी बंगाल के दक्षिणी छोर पर स्थित सुन्दरवन के 54 द्वीप समूहों में जंगल की रोमांचकारी दुनिया आबाद है। इनमें से कुछ आबादी वाले द्वीप हैं, जिनमें जनजातीय लोग निवास करते हैं। अपार जलराशि से घिरे सुन्दरवन में जलीय और स्थलीय प्राणियों का एक बडा परिवार निवास करता है। जल की बहुलता के कारण यहां के वन्य प्राणियों ने अपने आप को जलीय परिस्थितियों के अनुरूप बना लिया है। यही कारण है कि सुन्दरवन में निवास करने वाले अनेक वन्य प्राणियों की सामान्य आदतें या व्यवहार में अन्तर महसूस किया जा सकता है।
सुन्दरी (हिरीटीओरा फाम्स) नामक वृक्ष के बहुतायत में पाये जाने के कारण इस क्षेत्र को सुन्दरवन के नाम से जाना जाता है। सन 1973 में यहां 2585 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में प्रोजेक्ट टाइगर की स्थापना की गई और इसमें से 1330 वर्ग किलोमीटर के कोर क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। सुन्दरवन उन पर्यटकों के लिये स्वर्ग है जो प्रकृति के अपार सौन्दर्य के बीच वन्य जन्तुओं के स्वच्छन्द विचरण को करीब से देखने की चाह रखते हैं।
कब जायें: सुन्दरवन के भ्रमण के लिये शरद और बसन्त ऋतुएं सबसे अच्छी हैं। इस मौसम की स्फूर्तिदायक हवा और यहां का शान्त सुरम्य वातावरण पर्यटन की रोचकता को बढा देते हैं। इस दौरान यहां हल्के ऊनी वस्त्रों की जरूरत पडती है। गर्मी के मौसम में आने वाले पर्यटकों को हल्के सूती और धूप से बचने के लिये टोपी पहनने की सलाह दी जाती है।
कैसें जायें: सुन्दरवन पहुंचने के लिये निकटतम हवाई अड्डा कोलकाता है। यह देश के सभी हिस्सों से बोईंग और एयर बस सेवा से जुडा हुआ है। कोलकाता से सुन्दरवन पहुंचने के लिये पोर्ट कैनिंग तक की यात्रा ट्रेन से की जा सकती है। यहां से आगे सुन्दरवन राष्ट्रीय उद्यान पहुंचने के लिये जल परिवहन का सहारा लेना पडता है। सडक परिवहन के जरिये आप बसन्ती सोनाखाली तक पहुंच सकते हैं। यहां से आगे पार्क का सफर मोटर लांच से तय किया जा सकता है। डेल्टाई क्षेत्र होने के कारण सुन्दरवन में भ्रमण के लिये जलीय मार्ग सुलभ है। इनसे आने जाने के लिये प्राइवेट मोटर बोट और लांच की समुचित व्यवस्था है। पश्चिम बंगाल पर्यटन विभाग की ओर से कलकत्ता लग्जरी बस और लांच के जरिये सुन्दरवन के पैकेज टूर की भी व्यवस्था है। यह दो दिवसीय यात्रा अक्टूबर से मार्च तक प्रत्येक सप्ताहांत में आयोजित की जाती है।
प्रमुख नगरों से दूरी: कोलकाता 106 किलोमीटर, दार्जीलिंग 756 किलोमीटर, दिल्ली 1547 किलोमीटर, पटना 650 किलोमीटर, मुम्बई 2186 किलोमीटर।
कहां ठहरें: सुन्दरवन में पर्यटकों के ठहरने के लिये वन विश्राम गृह एक उपयुक्त जगह है। इसके अतिरिक्त साजनीखाली में पश्चिम बंगाल पर्यटन विकास निगम द्वारा संचालित सुन्दर चीतल टूरिस्ट लॉज में भी खाने, पीने और ठहरने की समुचित व्यवस्था है। टूरिस्ट लॉज में ठहरने के लिये पर्यटन कार्यालय, कोलकाता से अग्रिम आरक्षण करा लेना चाहिये।
क्या देखें: सुन्दरवन रॉयल बंगाल टाइगर का घर है। यह भारत में बाघों के लिये बनाया गया दूसरा सबसे बडा आरक्षित क्षेत्र है। भारत में यहां बाघों की सर्वाधिक आबादी निवास करती है। ऐसा कहा जाता है कि यदि आप सुन्दरवन में हैं तो समझिये कि बाघ निश्चित तौर पर आपको देख रहा है। यहां के निवासी जंगल में जाते समय बाघों को डराने के लिये सिर के पीछे मुखौटे लगाते हैं।
सुन्दरवन के बाघों ने खुद को जलीय परिस्थितियों के अनुरूप बना लिया है। विशेषज्ञों के अनुसार यह एक साथ दस किलोमीटर दूरी तैरकर पार कर लेते हैं। नदी से मछलियां पकडने में ये माहिर होते हैं और मधुमक्खियों के छत्ते से शहद खाते हुए भी देखे जा सकते हैं। गर्मी के दिनों में पानी और सर्दी के मौसम में रेत में धूप सेंकते बाघ सुन्दरवन में अक्सर नजर आ जाते हैं।
रंग-बिरंगे जंगली फूल और पेड-पौधों का सौन्दर्य सुन्दरवन को अत्यन्त आकर्षक बना देता है। ‘सुन्दरी’ वृक्ष का सदाबहार सौन्दर्य भी पर्यटकों को लुभाता है। अप्रैल-मई में ‘जनवा’ वृक्ष की नई पत्तियों की रक्तिम आभा हरियाली के बीच से उभरती आग का सा आभास देती है। कनेर के लाल फूल और खालसी के पीले फूल जंगल में बंदनवार की तरह सजे नजर आते हैं। नीपा के पके हुए फलों पर लपकते बंदर और शर्मीली गर्वीली चिडियों की नोंक-झोंक को देख कर हृदय प्रफुल्लित हो उठता है।
सुन्दरवन में जलीय पक्षियों का एक विस्तृत दयार है। पक्षियों के निरीक्षण के लिये साजनीखाली सबसे उपयुक्त जगह है। यहां जुलाई से सितम्बर के मध्य नीड निर्माण में जुटे पंछियों को देखना अच्छा लगता है। यदि आप आकाश की ओर निगाहें दौडायें तो सफेद रंग के समुद्री गरुड की हवाई कलाबाजियां आपका खूब मनोरंजन करेंगी। उद्यान में परिचित और अपरिचित दोनों प्रकार के पंछी पाये जाते हैं। इनमें हरे रंग का कबूतर, प्लोवर, लेप विंग्स आदि के साथ ही कभी कभार पेलिकन भी नजर आ जाती है। मछली खाने में माहिर किंग फिशर की तो यहां सात प्रजातियां पाई जाती हैं।
भारतीय डॉल्फिन (प्लैटिनिस्ता गंगैटिक) सुन्दरवन में पाई जाने वाली दुर्लभ स्तनपायी प्रजाति है। पार्क के पश्चिमी हिस्से में बहने वाली माटला नदी में इन्हें देखना अपेक्षाकृत सुगम है। लहरों के साथ नाचती डॉल्फिन अत्यधिक रोमांच और कौतुहल उत्पन्न करती है। यहां मछलियों की 120 प्रजातियां पाई जाती हैं। मगर, शार्क, कछुए और केकडे सुन्दरवन के अन्य प्रमुख जलीय जन्तु हैं।
जंगली सुअर और चीतल भी यहां सुगमतापूर्वक नजर आ जाते हैं। यदि आप भौंकने वाला हिरण, काकड देखना चाहते हैं तो इसके लिये हॉलिडे आइलैण्ड जाना पडेगा। क्योंकि यह सिर्फ इसी द्वीप में पाया जाता है। सुन्दरवन में जंगली बिल्लियां भी मिलती हैं। ये भी यहां के बाघों की तरह पानी से मछलियां पकडकर उनका शिकार करने में माहिर होती हैं।
राष्ट्रीय उद्यान के इर्द गिर्द बिखरे टापुओं में कई दर्शनीय स्थल हैं। इनमें कलश द्वीप, लूथियन द्वीप, जम्मूद्वीप और हॉलीडे द्वीप प्रकृति की कारीगरी को समेटे हुए अत्यन्त सुन्दर स्थल हैं। यहां हर वर्ष सैंकडों पर्यटक घूमने फिरने आते हैं।
भगवतपुर स्थित मगरमच्छ प्रजनन केंद्र में आप मगरमच्छ के विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अवलोकन कर सकते हैं। हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ गंगा सागर भी इसी क्षेत्र में स्थित है। यहां हर वर्ष मकर संक्रांति को एक बडा मेला लगता है।
लेख: अनिल डबराल (26 नवम्बर 1995 को हिन्दुस्तान में प्रकाशित)
सन्दीप पंवार के सौजन्य से
prakruti hamesha se aadmi ko uske khud se jodti rahi hai.Paryavaran bachega to aadmi bachega.
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