एशियाई शेरों की अंतिम शरणस्थली के रूप में मशहूर गिरवन राष्ट्रीय उद्यान को देखने का अपना अलग रोमांच है। शेरों की मस्ती और दहाड से गूंजते गिर में वन्य जन्तुओं की एक सजीव दुनिया आबाद है। गुजरात के जूनागढ जनपद में स्थित गिर के हरे-भरे जंगल रहस्यमय लगते हैं और लहराती हुई हरियाली मन पर जादू सा असर छोड जाती है।
किसी जमाने में गिर के घने जंगल जूनागढ के नवाबों के प्रसिद्ध शिकारगाह थे। नवाब और उनके यार-दोस्तों में शेरों के शिकार की होड सी लगी रहती थी। बडी संख्या में शेरों का शिकार करने के कारण सन 1900 में यहां सिर्फ 100 शेर बचे थे। कहते हैं कि जूनागढ के नवाब के निमन्त्रण पर तत्कालीन भारत के वायसराय लार्ड कर्जन भी शेरों का शिकार खेलने के उद्देश्य से जूनागढ गये थे। इसी दौरान स्थानीय समाचार पत्र में एक गुमनाम पत्र छपा जिसमें लुप्तप्रायः शेरों के आखेट के औचित्य को चुनौती दी गई थी। इस पत्र को पढकर लार्ड कर्जन ने शिकार का इरादा बदल दिया और जूनागढ के नवाब से शेरों को संरक्षण देने का आग्रह किया। गिर के जंगलों में शेर एवं अन्य वन्य जन्तुओं के संरक्षण की कहानी यहीं से शुरू होती है।
गिर के संरक्षित वन 1412 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं। सन 1969 में इसे अभयारण्य और 1975 में इसके 140 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
कब जायें: गिरवन जाने के लिये 15 अक्टूबर से 15 जून का समय उपयुक्त है। मानसून और वन्य प्राणियों के प्रजनन का समय होने के कारण उद्यान 15 जून से 15 अक्टूबर के बीच पर्यटकों के लिये बन्द रहता है।
कैसे जायें: गिरवन के लिये सडक, रेल और हवाई सेवा उपलब्ध है। निकटतम हवाई अड्डा केशोड यहां से मात्र 31 किलोमीटर दूर स्थित है। अहमदाबाद से केशोड के लिये विमान सेवा सुलभ है। अहमदाबाद, मेंडोर और जूनागढ से यहां के लिये रेल और सडक परिवहन की सुविधाएं सुलभ हैं। वेरावल और तलाला से भी सडक मार्ग द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।
प्रमुख नगरों से दूरी: अहमदाबाद 408 किलोमीटर, जूनागढ 60 किलोमीटर, पोरबन्दर 185 किलोमीटर, भावनगर 250 किलोमीटर, वेरावल 42 किलोमीटर।
कहां ठहरें: गिरवन में रहने और खाने-पीने की उपयुक्त व्यवस्था है। दो वन विश्रामगृह और भारतीय पर्यटन विकास निगम के होटल में ठहरने की उत्तम व्यवस्था है।
क्या देखें: शेर गिरवन का पहला आकर्षण है। मई-जून से 56 विशेषज्ञों की एक समिति शेरों की गिनती में लगी है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस समय (1995 में) यहां 300 शेर तो हैं ही। सन 1968 की गणना में यहां 177 शेर थे जो 1974 में बढ कर 180, 1979 में 205, 1985 में 239 और 1990 की गणना में 284 तक पहुंच गये। भारत में गिरवन और अफ्रीका के जंगलों के अलावा ये शेर और कहीं नहीं पाये जाते। वन्य जन्तु विशेषज्ञ शेरों के लिये देश में एक और ठिकाने की तलाश कर रहे हैं। शेरों पर शोध कर रहे वन्य जन्तु संस्थान के रवि चेल्लम के अनुसार शेरों को एक ही जंगल में रखना खतरे से खाली नहीं है। कभी भी कोई बीमारी या प्राकृतिक आपदा उनका नाश कर सकती है। इससे उनके विलुप्त होने का संकट उत्पन्न हो जायेगा। वैसे भी गिर के जंगलों में शेरों के लिये जगह कम पड गई है और वे आरक्षित क्षेत्र से बाहर निकलकर आसपास के इलाकों में जाने लगे हैं।
हिरण्य नदी के तट पर स्थित गिरवन में पानी का शेर घडियाल प्रजनन केन्द्र भी है। यहां घडियालों के प्रजनन के समय से लेकर आठ वर्ष तक के होने तक की सभी गतिविधियां देखी जा सकती हैं। शेर और घडियालों के अतिरिक्त गिर के जंगलों में लकडबग्घा, सांभर, नीलगाय, चीतल, चौसिंगा, जंगली सुअर और कभी कभार तेंदुए भी देखे जा सकते हैं।
लेख: अनिल डबराल (हिन्दुस्तान में 26 नवम्बर 1995 को प्रकाशित)
सन्दीप पंवार के सौजन्य से
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