सूर्य मन्दिर का नाम आते ही लोगों के जेहन में कोणार्क कौंध जाता है जबकि कोणार्क सूर्य मन्दिर के अलावा उत्तराखण्ड के अल्मोडा जिले में भी एक सूर्य मन्दिर है। यह सूर्य मन्दिर कटारमल गांव में है, इसलिये इसे कटारमल सूर्य मन्दिर भी कहा जाता है।
बारहवीं सदी में बना यह मन्दिर उत्तराखण्ड के इतिहास का प्रमाण है और सूर्य के प्रति लोगों की आस्था का भी। अल्मोडा में बना यह मन्दिर अपनी खूबसूरती के लिये भी उतना ही प्रसिद्ध है। इसकी बनावट और चित्रकारी बेहद खूब है। दीवारों पर भी खूबसूरत प्रतिमाएं दिख जाती हैं। मन्दिर में भगवान सूर्य की प्रतिमा एक मीटर लम्बी और पौन मीटर चौडी है, जो भूरे रंग के पत्थर को काटकर बनाई प्रतीत होती है। यहां सूर्य भगवान पदमासन की मुद्रा में बैठे हुए हैं। लोगों की आस्था है कि प्रेम और श्रद्धा से यहां मांगी हर इच्छा पूरी होती है। इस मन्दिर के दर्शन से ही भक्तजनों की बीमारियां और दुख दूर हो जाते हैं। इस मन्दिर को बारादित्य भी कहा जाता है, जो कुमाऊं का सबसे ऊंचा मन्दिर है।
कहा जाता है कि मन्दिर का निर्माण कत्यूरी वंश के राजा कटारमल ने करवाया था, एक इस वजह से इसे कटारमल सूर्य मन्दिर भी कहा जाता है। लोगों का मानना है कि राजा कटारमल ने इस मन्दिर का निर्माण एक रात में करवा लिया था। कोणार्क सूर्य मन्दिर की तरह ही यह भी कॉम्प्लेक्स के समान ही है यानी यहां 45 छोटे-छोटे मन्दिरों की श्रंखला है। मुख्य मन्दिर में सूर्य की प्रतिमा के अलावा विष्णु, शिव और गणेश की मूर्तियां भी हैं। अन्य देवी-देवता भी यहां विराजमान हैं। लोगों का यह भी मानना है कि सभी देवी-देवता यहां मिलकर भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। यहां सूर्य की प्रतिमा कई मायनों में अलग है, भगवान सूर्य यहां बूट पहने दिखते हैं। मन्दिर की इस प्रमुख बूटधारी मूर्ति की पूजा विशेष तौर पर शक जाति करती है।
कहा तो जाता है कि यह मन्दिर बारहवीं सदी में बना है, फिर भी इसकी स्थापना को लेकर लोगों में एक मत नहीं है। इतिहासकारों का मानना है कि अलग-अलग समय पर इसका जीर्णोद्धार होता रहा है। हां, वास्तुकला की दृष्टि से देखा जाये तो यह मन्दिर 12वीं सदी का प्रतीत होता है। मन्दिर की मुख्य प्रतिमा 12वीं सदी में निर्मित बताई जाती है। सूर्य के अलावा विष्णु-लक्ष्मी, शिव-पार्वती, कुबेर, महिषासुरमर्दिनी आदि की मूर्तियां भी गर्भ-गृह में रखी हुई हैं। मुख्य मन्दिर के द्वार पर एक पुरुष की धातु की प्रतिमा है, जिसके बारे में राहुल सांकृत्यायन ने कहा है कि यह मूर्ति कत्यूरी काल की है। इस ऐतिहासिक मन्दिर को सरकार ने पुरातत्व स्थल घोषित कर दिया है। अब यह राष्ट्रीय सम्पत्ति हो गई है। मन्दिर की अष्टधातु की प्राचीन मूर्तियां काफी पहले चुरा ली गई थीं लेकिन अब इन्हें राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय में रखा गया है। मन्दिर के लकडी के खूबसूरत दरवाजे भी यहीं रखे गये हैं।
एक साल पहले तक इस मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार का पता नहीं था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को मन्दिर की पूर्व दिशा में कुछ सीढियों के अवशेष मिले हैं। उडीसा के कोणार्क मन्दिर का भी प्रवेश द्वार पूर्व में है। वैदिक पुस्तकों के अनुसार भी सूर्य मन्दिरों का प्रवेश द्वार पूर्व में ही होता है लेकिन कटारमल मन्दिर का प्रवेश द्वार आश्चर्यजनक रूप से एक कोने में है, जो इस स्थापत्य से मेल नहीं खाता। इस मन्दिर समूह के सभी मन्दिरों का प्रवेश समूह के पीछे छोटे से प्रवेश द्वार से है, जो सूर्य मन्दिर को भी जोडता है।
यह मन्दिर करीब 1554 मीटर की ऊंचाई पर है, जहां पहुंचने के लिये पैदल चलना पडता है। यहां पहुंचने के लिये पहले अल्मोडा आना होगा। अल्मोडा से रानीखेत के रास्ते 14 किलोमीटर के बाद 3 किलोमीटर पैदल चलना पडता है। वैसे अल्मोडा से कटारमल मन्दिर की दूरी करीब 20 किलोमीटर है।
लेख: राष्ट्रीय सहारा में 26 जून 2011 को प्रकाशित
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