पहाडों की सुन्दरता एवं विशालता के विषय में बातें करना या उनके बारे में कोई तस्वीर बनाना वास्तविकता से कहीं भिन्न है। पहाडों की विशालता व दुर्गम घाटियों की वास्तविकता को जानने का अवसर उन्हीं की गोद में जाकर या उनके सीने पर चलकर मिलता है। हमारी छोटी सी टीम को भी इसी प्रकार का अवसर मिला, जब हमने कुछ अरसे पूर्व पांगी घाटी (साच पास) से साक्षात्कार किया। हमारी भेल (बी.एच.ई.एल.) टीम अभी भी उस सुखद यात्रा के आनन्द से वशीभूत है।
पांगी घाटी हिमाचल प्रदेश का वह हिस्सा है, जो जम्मू कश्मीर की सीमा को छूता हुआ चलता है। पांगी घाटी की अपनी अलग सभ्यता और मनमोहकता है, जो पर्यटन के लिये एक विशेषता है। पांगी साल में नौ महीने बर्फ से ढकी रहती है।
हमने पांगी को क्यों चुना, यह कहना कठिन है परन्तु हमने किसी भी ऐसी कठिनाई का सामना नहीं किया जो हमारी इस यात्रा को कोई दुखद अनुभव देता। दिल्ली से रात को चलकर सुबह-सुबह पठानकोट पहुंचकर हमने चम्बा की बस लेकर 125 किलोमीटर का सफर हंसते हंसते तय किया। एक शाम चम्बा में रहकर सुबह फिर अपने ट्रैकिंग पाइण्ट पर पहुंचने के लिये बस ली और तरेला पहुंचे। तरेला ही हमारा वह प्रारम्भिक स्थान था, जहां से हमें पैदल यात्रा प्रारम्भ करनी थी। हमने अपने साथ कुछ खाने की सामग्री ले ली थी जिसके लिये हमने चम्बा से ही भरमौर के दो वासी साथ ले लिये थे। जो अन्त तक हमारे साथ रहे। वे वहीं के वासी थे और हमें उनका काफी सहारा रहा। हमारे सभी नौ साथियों के पास रकसैक (पिट्ठू) थे, जिनमें वस्त्र व अन्य आवश्यक वस्तुएं थीं।
तरेला से हमारी चढाई का क्रम आरम्भ हो गया। पहला पडाव हमने उसी दिन भनौडी में एक नेपाली ढांचे में किया। भनौडी की ऊंचाई लगभग 2744 मीटर है।
भनौडी से चढाई के क्रम को जारी रखते हुए हम सतरुंडी पहुंचे। यह रास्ता बडा ही दुर्गम पर मनोरम था। चढाई ऐसे आती थी, मानों खत्म ही नहीं होगी परन्तु प्रकृति का स्वस्थ व मनमोहक वातावरण हमें थकान से उबार रहा था। सतरुंडी 3658 मीटर ( 12000 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। जहां से हमें ट्रैकिंग का सबसे ऊंचा स्थान ‘साच पास’ पार करना था। हमने एक रात वहीं पर काटी। अगले दिन प्रातः पांच बजे ही हम सभी चल पडे साच पास की ओर। कुछ ही घण्टों में हमने अपनी ट्रैकिंग के सबसे ऊंचे स्थान पर जाकर 14500 फीट की ऊंचाई का आनन्द लिया। यहीं से हमने अगले दो पडाव तक बर्फ व बर्फ की नदियों (ग्लेशियर) का सामना किया और अपने अगले पडाव बगोटू पर जाकर ही दम लिया। ग्लेशियर जो सितम्बर के महीने में पिघलने लगते हैं, थोडे से खतरनाक हो जाते हैं। परन्तु सावधानी व साहस से उनका मुकाबला किया जा सकता है।
ग्लेशियर पर चलने का आनन्द ही अलग है। उन ग्लेशियर का सामना हमने अपने अगले पडाव बिंद्रावनी तक किया। बिंद्रावनी में बर्फ से पीछा छूटा। इस पडाव के बाद आगे का रास्ता आसान ही रहा। हम चंद्रभागा पुल से होते हुए चंद्रभागा नदी के किनारे-किनारे परन्तु लगभग 1000 फीट ऊपर चलते-चलते किलाड पहुंचे। यहां पर पी.डब्ल्यू.डी. के बंगले में कुछ वक्त गुजारा। यहां पर कुछ कश्मीरी आतंकवादियों की घुसपैठ से छोटी सी तहसील आतंकित थी। अतः हमने खाना खाकर बंगले में ही सो जाना उचित समझा। किलाड के बाद हमने अपने पडाव चेरी बंगला व पूर्थी में डाले । ये सभी जगहें पांगी में ही आती हैं।
पांगी में ट्रैकिंग एक अलग ही अनुभव है। अलग संस्कृति, अलग भाषा, अलग पहनावा, अलग प्रकृति, यह सब पांगी घाटी की ट्रैकिंग की विशेषताएं हैं, जो वहीं पर अनुभव की जा सकती हैं। पांगी घाटी ट्रैकिंग में हमने पूरे दस दिन पैदल यात्रा की और पूर्थी से बस लेकर उदयपुर, लाहौल-स्पीति होते हुए मनाली आये। यहां से दिल्ली की बस लेकर वापस लौटे।
लोग अक्सर ट्रैकिंग के नाम से भयभीत होते हैं परन्तु पांगी जैसे दुर्गम रास्ते में भी ट्रैकिंग को एक खेल की तरह किया जा सकता है। बशर्ते आपके अन्दर प्रकृति को देखने और समझने की चाह हो। हमारे जैसे मानव वहां भी बसते हैं और पूरा जीवन उन्हीं वादियों में हर तरह के मौसम में काटते हैं। दरअसल ट्रैकिंग का अनुभव प्रकृति व मानव के निकटतम सम्बन्धों को जानने का बहुत ही सुन्दर साधन है। यदि कुछ समय निकालें तो ट्रैकिंग पर अवश्य जायें। इससे प्रकृति की आवश्यकता को समझने और पर्यावरण की जरूरत महसूस करेंगे।
पांगी घाटी (साच पास) ट्रैकिंग के लिये विस्तृत ब्यौरा हिमाचल पर्यटन कार्यालयों से लिया जा सकता है।
यात्रा वृत्तान्त: सुनील चौधरी
सन्दीप पंवार के सौजन्य से
सुन्दर प्रस्तुति किन्तु कुछ चित्र होते तो और सजीव ! बढाती आप के ट्रेकिंग टीम को
जवाब देंहटाएंसचमुच रोमांचकारी लग रही है..मौका मिला तो एक बार ज़रूर जाना चाहूँगी..
जवाब देंहटाएंगजब भाई गजब!!!
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