गुरुवार, मार्च 08, 2012

घाना राष्ट्रीय पक्षी उद्यान- पंख-पखेरुओं का संसार

कुदरत ने हमें पंख-पखेरुओं का एक विचित्र और कौतुहल भरा संसार प्रदान किया है। आज दुनिया में पक्षियों की अनेक नस्लें समाप्त हो चुकी हैं। कुछ पक्षी प्रजातियां समाप्ति के कगार पर हैं और कुछ पंछी जीवन संघर्ष करते हुए इतनी कम तादाद में बचे हैं कि उनको देख पाना भी मुश्किल हो गया है। पक्षियों के संरक्षण के लिये अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास शुरू हो चुके हैं। भारत में इस समय कई पक्षी विहार हैं। राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित केवलादेव घाना राष्ट्रीय पक्षी उद्यान भी एक ऐसा ही प्रसिद्ध पक्षी विहार है जहां अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से लुप्तप्राय पक्षियों की वंशवृद्धि के प्रयास किये जा रहे हैं। 

रियासती दौर में भरतपुर के ये जंगल शाही शिकारगाह थे। भरतपुर नरेश स्वयं अपने और अपने खास मेहमानों के मनोरंजन के लिये यहां आते थे। उन दिनों पक्षियों के शिकार का शौक इस कदर बढ गया था कि सन 1927 में महाराज अलवर के आगमन पर आयोजित शिकार में यहां 1453 पक्षी गोलियों से भूने गये। सन 1936 में वायसराय लार्ड लिनालिथगो के हाथों 1415 पक्षी शहीद हुए और सन 1938 में इसी वायसराय के आगमन पर यहां सिर्फ एक ही दिन में 4273 परिंदों को बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया गया। 

बहरहाल 13 मार्च 1965 से यहां पशु-पक्षियों के शिकार पर रोक लगाई गई और इसे राष्ट्रीय पक्षी विहार घोषित कर दिया गया। 29 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह उद्यान जल पक्षियों का स्वर्ग है। पार्क के 11 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में उथली झीलें हैं जिनमें जलीय परिंदों के लिये तरह तरह की मछलियां तथा ‘ट्यूबर्स’ व ‘सेसेज’ नामक घास पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहती है। 

कब जायें: अगस्त से मार्च के मध्य का समय घाना राष्ट्रीय उद्यान के भ्रमण के लिये सबसे उपयुक्त है। अगस्त से नवम्बर का समय अधिकांश पक्षियों का प्रजनन का समय होता है। अतः पक्षियों के नीड निर्माण और विभिन्न प्रजनन क्रियाओं के निरीक्षण के लिये यह समय उपयुक्त है। यदि आपकी रुचि प्रवासी पक्षियों में है तो आपको नवम्बर से मार्च के बीच यहां जाना चाहिये। 

कैसे जायें: भरतपुर स्थित केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान भारतीय पर्यटन के मशहूर गोल्डन ट्रैंगल यात्रापथ पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिये हवाई अड्डा है। दिल्ली से मुम्बई जाने वाली प्रायः सभी रेलगाडियां भरतपुर होकर जाती हैं और यहां ठहरती हैं। दिल्ली, आगरा, मथुरा और जयपुर से यहां पहुंचने के लिये हर प्रकार की सडक परिवहन सुविधाएं सुलभ हैं। 

प्रमुख नगरों से दूरी: दिल्ली 175 किलोमीटर, मुम्बई 1260 किलोमीटर, आगरा 56 किलोमीटर, जयपुर 176 किलोमीटर, लखनऊ 419 किलोमीटर।

कहां ठहरें: राजस्थान पर्यटन का विश्राम गृह सारस, शान्ति कुटीर और भारतीय पर्यटन विकास निगम के फॉरेस्ट लॉज के अतिरिक्त भरतपुर में ठहरने के लिये कई अच्छे होटल हैं। आप चाहें तो स्थानीय लोगों के बीच पेइंग गेस्ट के रूप में भी ठहर सकते हैं। 

क्या देखें: घाना पक्षी उद्यान में 352 प्रजातियों के पक्षी पाये जाते हैं। इनमें 232 स्थानीय और 120 प्रवासी हैं। स्थानीय पक्षी पूरे वर्ष इस उद्यान अथवा इसके इर्द-गिर्द के इलाकों में निवास करते हैं जबकि प्रवासी पक्षी शीतकाल में यहां अपना डेरा जमा लेते हैं। 

सूर्योदय के समय झील के किनारे पहुंचकर पंछियों को निहारना अपने आप में एक सुखद अनुभव है। सरोवर के बीच में छोटे छोटे भूखण्ड, चट्टानों और पेडों पर सैकडों पंछी बैठे हुए नजर आते हैं। पक्षियों का कलरव, आकाश में उडान और नोंक-झोंक बहुत अच्छा लगता है। पार्क में जगह जगह वाच टावर भी हैं जहां से आप पक्षियों की विभिन्न गतिविधियों को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। विहंगावलोकन का सर्वोत्तम समय प्रातः और सायंकाल है। सुबह होते ही पक्षी अपनी मधुर स्वरलहरियों के बीच भोजन की तलाश में जुट जाते हैं और सायंकाल को अपने नीडों में लौटते समय झुंड के झुंड आकाश में उडानें भरते रहते हैं। 

यहां पाये जाने वाले विशिष्ट पक्षियों में बुज्जा (आइविस), जांघिल (पेंटेड स्टार्क), कलहंस (गीज), चेती (टील), बगुले (इग्रेट), हेरन, कोमोरेट, टिकरी, पनकौवा, बुलबुल, राजहंस, सोन चिडिया, तीतर, बटेर, क्रोंच, बाज, सारस, रोजी पास्टर, स्नेक बर्ड, गोल्डन प्लोवर, सारिका, पपीहा, स्ट्रा, ओपनबिल, स्पूनबिल, परपल, कूटस, पिनटेल, पोचर्ड आदि प्रमुख हैं। गाइड की मदद से आप इन पक्षियों की पहचान कर सकते हैं। 

किन्तु घाना का मुख्य आकर्षण है साइबेरियाई क्रेन। सफेद रंग के ये सारस मध्य साइबेरिया से करीब छह हजार किलोमीटर की यात्रा के बाद यहां पहुंचते हैं। साइबेरियाई सारस एक दुर्लभ पक्षी है। पूरी दुनिया में इनकी गिनती घटकर 350 से भी कम हो चुकी है। एक अर्से पहले तक ये सैकडों की तादाद में घाना पहुंचते थे। सन 1967 में इनकी संख्या 200 दर्ज की गई थी किन्तु पिछले कुछ वर्षों से यह संख्या निरन्तर घटती जा रही है। पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि प्रवास के दौरान जब ये सारस अफगानिस्तान और पाकिस्तान की झीलों में रुकते हैं तो वहां शिकारी इन्हें मार डालते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय क्रेन फाउंडेशन इनके संरक्षण के लिये पूरी तन्मयता से जुडा हुआ है। इसके अन्तर्गत कृत्रिम रूप से सेह कर पैदा किये साइबेरियन सारस के बच्चों को घाना लाना और इनके पैरों पर ट्रांसमीटर लगाकर उपग्रह के जरिये इनकी निगरानी करना शामिल है। साइबेरियन क्रेन भारतीय बगुले से काफी मिलते-जुलते हैं। अन्तर इतना है कि इनकी चोंच और टांगें गुलाबी रंग की होती हैं। उडान के समय फैलाये पंखों के नीचे काले धब्बे दिखाई देते हैं। दरअसल उडान के समय इन्हें पहचानने का यही मुख्य लक्षण है। घाना का महत्व इसलिये भी बढ जाता है क्योंकि पूरे दक्षिण एशिया में साइबेरिया के सफेद सारसों का यही एकमात्र शीतकालीन बसेरा है। 

रंग बिरंगी चिडियों के साथ ही यहां चीतल, सांभर, नीलगाय, लोमडी, गीदड आदि वन्य जन्तुओं को भी विचरण करते हुए देखा जा सकता है। हिरणखुरी के पास अजगरों की गुफाएं हैं। यहां अजगरों को देखने के लिये पर्यटकों की खूब भीड जमा रहती है। अपनी किस्म के इस अनूठे पक्षी विहार में रंग-बिरंगी चिडियों की चहचाहट के साथ ही हर सुबह पर्यटकों की चहलकदमी भी शुरू हो जाती है। यहां आने वाले पक्षी प्रेमियों की संख्या हर वर्ष बढती जा रही है। 

लेख: अनिल डबराल 
सन्दीप पंवार के सौजन्य से

2 टिप्‍पणियां:

  1. Aapke lekh mahitisabhar hote hai, rest house, lodge, hotel, ya forest house ka bhada kitna hai wo agar likhe to mahiti me aur vruddhi ho sakti hai

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  2. अच्छी जानकारी दी आपने. धन्यवाद

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